खाद की महंगी विक्री, व तस्करी से किसान परेशान

December 9, 2023 3:58 PM0 commentsViews: 1021
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अजीत सिंह 

 

सिद्धार्थनगर। गेहूं की फसल की बुवाई लगभग हो चुकी है इस वक्त किसान सिंचाई की तैयारी में है और रासायनिक खाद की मनमानी कीमत से किसानों के कलेजे कांपने लगे हैं। सरकार द्वारा निर्धारित दाम से अधिक राशि लेकर किसानों को खाद दिया जा रहा है। जिससे किसानों में काफी नाराजगी है किसानों का कहना है एक तो साल दर साल उन्हें प्रकृति की मार झेलनी पड़ रही है ऊपर से खाद के लिए मनमानी कीमत चुकानी पड़ रही है।

सरकारी तंत्र भी किसानों को राहत दिलाने के लिए मुस्तैद नहीं दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में किसानों को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। खाद्य विक्रेता किसानों से मनमानी कीमत वसूल रहे हैं। किसानों के मुताबिक 1350 वाली डीएपी 1600 से 1700 रुपए प्रति बैग वसूली गई है। वहीं अब 266 रुपए वाली यूरिया 350 से 400 रुपए प्रति बैग की दर से बेची जा रही है।
इधर खाद विक्रेताओं का कहना है कि उन्हें सही कीमत पर यूरिया व डीएपी उपलब्ध नहीं हो रहा है, थोक व्यापारी द्वारा ऊंचे दामों पर खाद दिया जा रहा है जिसके कारण उन्हें भी ऊंचे दाम पर खाद बेचना पड़ रहा है।

तस्करी को लेकर भी है शिकायत
शोहरतगढ़ क्षेत्र के बजहा में विकसित भारत संकल्प यात्रा कायकर्म के दौरान किसानों ने शोहरतगढ़ विधायक विनय वर्मा से उर्वरक की महंगी कीमत और तस्करी को लेकर शिकायत भी की है।


भारत नेपाल की सीमा पूरी तरह से खुली है इसका दुरुपयोग तस्कर करते चले आ रहे हैं। यह भारत और नेपाल में डिमांड और वस्तु की कमी के हिसाब से तस्करी करते हैं, मौजूदा समय में सीमा पर यूरिया खाद की तस्करी बढ़ी है, सुबह और शाम ढलते ही तस्कर खाद सीमा पार ले जाने का काम शुरू कर देते हैं।

आज चिल्हिया, टेकनर और पल्टादेवी से बिना पर्ची के मोटर साइकिलों से लाई जा रही खाद को किसानों ने कोरीडीहा में रोका उनके पास पर्ची या बिल ही नही था, पूछने पर बताया की माल मटियारिया किसी व्यापारी का है। सीमा क्षेत्र के किसानों से मिली जानकारी के अनुसार पहले खाद की दुकानों से सीमाई क्षेत्र के गांव में बड़ी मात्रा में डंप किया जाता है फिर मौका पाते ही दिन हो या रात उसे नेपाल पहुंच कर अच्छी कमाई की जाती है।

बता दे की खाद नेपाल पहुंचने से बाजार में खाद की कमी हो जाती है कमी होने के बाद जहां दुकानदार अधिक दाम पर खाद बेचते हैं वहीं किसानों को खाद के लिए भाग दौड़ करने पड़ती है उस दौरान खेतों में समय से खाद भी नहीं पड़ पाती जिससे किसानों की फसल प्रभावित होती है।

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