exclusive-पिरैला में दहेज के खिलाफ जंग का असर, कैंसिल किये जा रहे डीजे, बैंड और नाच गाने के प्रोगाम

March 2, 2016 2:41 PM0 commentsViews: 1407
Share news

नजीर मलिक

अंजुमन रजा़ ए मुस्तफा के पदाधिकारी मीडिया से बात करते हुए

अंजुमन रजा़ ए मुस्तफा के पदाधिकारी मीडिया से बात करते हुए

सिद्धार्थनगर। मुस्लिम बाहुल्य पिरैला गांव में दहेज लेने पर सामाजिक कायकाट और जनाजे की नमाज न पढ़ने के एलान के नतीजे सामने आने लगे हैं। यहां के तमाम मुसलमनों ने अपने झार के शादी ब्याह के मौके पर बुक कराये गये डीजे, बैंड और नाच गाने के प्राग्राम कैंसिल कराना शुरू कर दिया है। अंजुमन रजाये मुस्तफा कमेंटी इस पर निगाह रख रही है।

तकरीबन तीन हजार की आबादी वाले इस गांव में अप्रैल और मई में कम से कम दो दर्जन शादियों की तारीख तय है। इन सबमें डीजे की बुकिंग हो चुकी थी। कई शादियों के लिए डांसिंग गर्ल से एग्रीमेंट हो चुका था। लेकिन अब सारे एग्रीमेंट रद किये जा रहे हैं।

शादियों में आती थीं तवायफें

यूपी विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद के गांव के रूप में मशहूर पिरैला गांव के मुसलमानों में सामाजिक बुराइयां बहुत थीं। यहां मुसलमानों के घरों में शादी ब्याह के मौके पर डीजे, बैंड बाजा ही क्या, तवायफों के डांस भी होते थे। आर्थिक मजबूती की वजह से लोग ऐसे मौकों पर जम कर पैसे खर्च करते थे।

गांव के पत्रकार मो. शाबान बताते हैं कि मात्र तीन घरों को छोड़ कर सारे मुस्लिम घरों में यह बुराई आम हो चुकी थी। लेकिन अंजुमन रजा-ए-मुस्तफा कमेंटी के सख्त फरमान के बाद गांव में सुधार की उम्मीद जगी है। याद रहे कि 10 दिन पहले इस कमेंटी ने एलान किया था कि दहेज लेने या शादी ब्याह में डीजे नाच गाने कराने वाले का सामाजिक बहिश्कार होगा। यहां तक कि उनके किसी परिजन की मौत पर जनाजे की नमाज में भी षिरकत नहीं की जायेगी।

हज यात्रा ने बदली तस्वीर

रुपये पैसे से मजबूत होने के बावजूद इस गांव में कभी किसी ने हज नहीं किया था। गांव के लोग बताते हैं कि गत वर्ष मास्टर अजीज साहब, उनकी पत्नी, हाजी सुभान अली, मो अदील व दीन मोहम्मद और उनकी पत्नी हज करने गये थे। वहां से आने के बाद इन लोगों ने इसे इस्लाम के खिलाफ मान कर इसके खिलाफ आवाज उठाने की सोची।

ग्रामीणों के मुताबिक इन हाजी साबान ने पहले लोगों को समझाया। नहीं मानने पर इन लोगों ने मस्जिद के इमाम मुआजुद्दीन को भरोसे में लिया। इसके बाद गांव में आम मजलिस बुला कर इसका ऐलान किया गया।

इस बारे में इमाम साहब और मास्टर अजीज का कहना है कि उन लोगों ने अपने गांव से शुरूआत की है। दहेज, नाच गाना गैर इस्लामी नहीं, सामाजिक बुराई भी है। उनका कहना है कि दूसरे गांवों के लोगों को भी इस तरफ कोशिश करनी चाहिए।

Leave a Reply