सियासी माहौलः विधानसभा चुनाव की जमीन तैयार करने में लगे हैं अफरोज मलिक

August 8, 2019 12:52 PM0 commentsViews: 1876
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नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। जिले के डुमयिगंज विधान सभा क्षेत्र की सियासत मकें करवट बदलने के आसार दिख रहे है। इस विधानसभा क्षेत्र से एक नये नेता अफरोज मलिक ने चुनाव लड़ने का मन बनाया है। हालंकि अभी चुनाव में अभी दो सील बाकी हैं, मगर इन दो सालों में सक्रिय रह कर वह अपनी चुनावी फौज को तैयार कर मैदान मार लेने की नीति पर चलते दिखाई  दे रहे हैं।

कौन हैं अफरोज मलिक?

अफरोज मलिक डुमरियागंज के प्रसिद्ध गांव बिथरिया के निवासी हैं। इसी गांव के निवासह स्व; विधायक तौफीक मलिक भी थे। इस वक्त सियासत में उनकी बेटी सक्रिय है। अफरोज मलिक  मुम्बई में रियल स्टेट का मुख्य करोबार है। दूसरे शब्दों में उभरते कैपिटलिस्ट हैं। लेकिन उनकी पहिचान उनके व्यापार से नहीं उनकी सोशल एक्टिविटी से है। वे जय हो फाउंउेशन के बैनर तले मुमबई के सामाजिक सरोकारों से हमेया जुड़े रहते हैं और राजनीतिक तौर पर कांग्रेस से जुडे  हैं। वे मुम्बई के कई बड़े आंदोलनों से जुड़े रहे हैं।

व्यापार में मजबूती से कदम जमा लेने के बाद अब वे  निश्चिंत होकर  राजनीति में दांव आजमाना चाहते हैं। इसके लिए मुम्बई में कुर्ला का इलाका उनके लिए  मुफीद था, मगर अफरोज मलिक कहते हैं कि राजनीति के माध्यम से वे अपनी माटी से जुड़ कर लोगों की सेवा करना चाहते हैं। इससे उन्हें अपनी जमीन की खिदमत करने का मौका मिलेगा। उनकी ख्वाहिश अपनी जड़ों से जुड़ी रहने की है। यकीनन यह अच्छी बात है।

रोचक होगी भविष्य में डुमरियागंज की जंग

अफराज मलिक के डुमयिगंज की सियासत में उतरने की घोषणा से निकट भविष्य में डुमरियागंज की सियासत बहुत रोचक औरा रोमांचक होने के आसार हैं। इस क्षे़त्र में १९७४ से ही कोइ्र न कोई मलिक वंशी सियासत की एक धुरी रहा है। पूर्व म़ी मलिक कमाल युसुफ और  स्वर्गीय विधायक मलिक तोफीक अहमद का  यहां बराबर का प्रभाव रहा है। कमाल यूसुफ और उनके पुत्र इरफान मलिक अभी भी सक्रिय है, जबकि तोफीक अहमद की मौत के बाद उनकी बेटी सैयदा खतून गत चुनाव में भाजपा से मा़त्र चंद वोटों से हारी हैं। इन लोगों के  बीच अफरोज मलिक अपना प्रभाव कैसे पैदा करेंगे यह एक बड़ा सवाल है।

आदमी का काम अपनी छाप छोडता है- अफरोज मलिक

अपना प्रभाव कारयम करने के बारे में अफरोज मलिक का मानना है कि इसके लिए बम और बंदूक या धन की जरूरत नहीं पड़ती। उनका काम होगा जनता के बीच मेहनत करना। अगर वे जनता के सुख दुख के साथी होंगे तो जनता जरुर उनके पीछे लामबंद होगी। वह इंसानिसत की खिदमत करेंगे  तो अवाम उनके साथ होगी। लोकतंत्र में अवाम से बउ़ी ताकत कोई नहीं होती।  लोकसभा चुनाव के बाद से जितनी तेजी से लोग मुझसे जुडे हैं, उससे मुझे नई ताकत मिली है। मुझे अपनी कार्यशैली पर यकीन है और यकीन से कह सकता हूं कि आने वाले कल में मै जरूर कुछ करके दिखाऊॅ़गा।

 

 

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