मुलाकातः सियासत में रहते हुए भी सियासी दलदल से दूर हैं बसपा उम्मीदवार आफताब

January 16, 2018 12:29 PM0 commentsViews: 91
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नजीर मलिक

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। बसपा ने जिले की इकलौती लोकसभा सीट डुमरियागंज से आफताब आलम को उम्मीदवार बनाया तो लोगों में एक परदेशी को यहां बिठाने की अफवाहें फिजां मै तैरने लगीं।  लेकिन जब मीडिया कर्मियों ने उनसे पहली मुलाकात की तो उनके बारे में प्रचारित धारणाएं बालू की भीत की मानिंद भरभरा कर ढह गईं। पहली मुलाकात में वह एक सौम्य, सलोने और सलीकेदार तो दिखे ही राजीतिक रुप से समझदार भी लगे।

नौजवान और लंबे कद काठी में अफगानी पठान से लगने वाले आफताब से बात करने के पहले वह खिलंदड़े और नौसिखिया सियासतदान ही लगे, मगर  जब बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो उनके बारे में में फैलाई गईं सारी अफवाहें ध्वस्त होती दिखीं। उन्होंने वार्ता शुरू करते ही कहा कि मै परदेशी नहीं हूं। सिद्धार्थनगर से बसपा का टिकट मिलते ही मैने सबसे पहले यहां घर बनाया तब अपने आपको बसपा का उम्मीदवार माना। उनका मकान शहर के हुसैनगंज मुहल्ले में बना है और वार्ता उसी नवनिर्मित आवास में हो रही थी।

पूरा आवास बसपा के वर्करों से भरा था। उनका कहना था कि  अब जीना मरना यहीं  है, इन्हीं साथियों के बीच है। उनसे सवाल हुआ कि आप गोरखपुर छोड़ कर यहां क्यों आये?  उनका जवाब था कि समाज में बदलाव के लिए हिजरत की परम्परा रही है। शहीदे आजम भगत  सिंह पंजाब से होकर यूपी में लड़ सकते हैं, चन्द्र शेखर आजाद मध्य प्रदेश के होते हुए इलाहाबाद में लड़ सकते हैं तो क्या मै एक अदना इंसान सामाज की सेवा के लिए गोरखपुर से चल का 70 किमी दूर सिद्धार्थनगर में जनता के लिए नहीं लड़ सकता?

बहरहाल आफताब आलम ने साफ किया की बसपा की गरीब परस्त नीति ने मुझे प्रभावित किया और मै समाज की खिदमत के लिए राजनीति में चला आया। इस पार्टी में दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष सवर्णों के लिए पूरी जगह है। यह साम्प्रदायिक और सामंती तत्वों को छोड कर सर्वसमाज की पार्टी है। इसमें रह कर समाज सेवा प्रभावी तरीके से की जा सकती है। बहन मायावती जी ने सिद्धार्थनगर की सेवा का अवसर  मुझे दिया है। अब यही मेरा वतन है। यही मेरी सरजमीन है। उन्होंने कहा कि अब वे अपने सिद्धार्थनगर के नये घर में रहेंगे। दीन दुखियों की सेवा करेंगे।

जिले की समस्या के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें बखूबी पता है किसिद्धार्थनगर में उच्च शिक्षा, खास कर विज्ञान, कामर्स और कमप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। इसलिए बेरोजगार बेकार घूम रहा है। सड़के बदहाल हैं। रेल लाइन है पर उस पर दौड़ने वाली रेले नहीं है। कपिलवस्तु का पर्यटकीय विकास हो जाता तो पचास हजार युवाओं को यहां रोजगार मिल जाता। गौतम बुद्ध की जमीन की प्रतिष्ठा भी बढ जाती।

उन्होंने कहा कि युवाओं के स्किल विकास के लिए प्रोग्राम नहीं हैं। लड़कियों के लिए कार्यक्रम नहीं हैं। किसान खाद, बीज, बिजली पानी के अभाव में खून के आंसू रो रहा है। यहां काम करने के लिए असीम संभावनाएं हैं। यह और बात है कि यहां के सियासतदान लोगों को वादों के नाम पर छलते रहे हैं। आफताब आलम ने कहा कि जिस दिन उन्हें यहसास होगा कि वे यहां की जनता के लिए कुछ कर नहीं सकते, अपना बोरिया बिस्तर बांध कर सियासत को अलविदा कह देंगे।

अंत में उन्होंने का कि यहां के बुजुर्ग हमारे वालिदैन हैं। नौजजान हमारे भाई है। गरीब हमारे परिवार के हिस्सा हैं। सभी के लिए हर वक्त हमारे दरवाजे खुले हैं। उन्होंने जिलेवासियों से अपील किया कि एक बार हम पर भरोसा कीजिए। आप हमसे हाथ मिलाइये। हम आपके लिए लड़ने को तैयार हैं।

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