ग्रामीण छात्रों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है अजय अग्रहरि की कहानी

December 17, 2018 1:44 PM0 commentsViews: 1705
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नजीर मलिक

डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर। कहानी एक ऐसे निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के युवक की है, जिसके बचपन और किशोरवस्था अभावों में गुजरा, लेकिन आपने संघर्ष और अभाव को उसने उर्जा और शक्ति में रूपांतरित कर दिया और अंत में वह विश्व की सबसे बड़ी कांर्टैक्ट रिसर्च आर्गेनाजेशन में इंजीनीयर बन गया।  जीं हां, यह प्रेरणादायक कथा जिले के डुमरियागंज की है और लोग उस युवक को अजय अग्रहरि के नाम से जानते हैं।

चौंतीस साल पहले यानी 1986 में डुमरियागंज एक गांवनुमा कस्बा था। यहां के प्राइमरी स्कूल में अजय अग्रहरि की शिक्षा शुरू हुई। अजय अग्रहिर बताते हैं कि उस वक्त उनके अभाव के दिन थे। कापी किताबों की मुश्किल थी। जूनियर हाईस्कूल के बाद मुश्किलें और बढ़ीं। पढ़ाई का खर्च बढने लगा। दिल में पढ़ने की उमंग थी, मगर परिवार के आर्थिक संसाधन कम थे। मन में धनाभाव की टीस लिए हुये किसी तरह इंटर पास करने के बाद सन 2000 में उच्च शिक्षा के लिए बाहर चला गया।

सारे रास्ते बंद थे, सामने अंधकार था

अजय की इंजीनीयरिंग की पढाई का दौर बहुत कठिन था। परिवार की आय सीमित थी। पढाई का खर्च ज्यादा था। कई बार लगा की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ेगी। हालात ये थे के सामने अंधकार था, आगे के रास्ते बंद थे, मगर मुश्किलों को ऊर्जी में रूपानतरित कर किसी तरह इंजीनियरिंग पास की। उस समय कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि मुझे कनाडा में नौकरी मिली यह 2010 का साल था। वहां एक साल रहने के बाद भारत आया। एक साल तक यहं नौकरी करने के बाद वर्ष 2012 में विश्व की सबसे बड़ी कांर्टैक्ट रिसर्च आर्गेनाजेशन में सर्विस करने के लिए न्यूजीलैंड जाना पड़ा, वहां उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।

अजय अग्रहरि नहीं अजय द ग्रेट

न्यूजीलैंड में 6 सालों के अंतराल में अजय अग्रहिर ने बहुत कुछ सीखा और लोगों को बहुत कुछ सिखा रहे हैं। वह न्यूजीलैंड में नौकरी के बाद के बचे समय में लोगों को योग की निशुल्क शिक्षा देते हैं। उन्होंने याग शिक्षा की डिग्री ले रखी है। वह इच्छुक लोगों को हिंदी बोलना भी यिखाते हैं। इस दैरान वे उन्होंने चीुद बहुत कुछ सरखा। ३४ साल कि उग्र में वे सपेनिश, पुर्तगाली, जर्मन व रशिएन भाषा सीख चुके है और आगे इसमें निपुणता प्राप्त करने में लगे हुए हैं। यही नही वे जब भी डुमरियागंज आते है अपने पुराने स्कूल में पहुंच कर बच्चों को कम्प्यूटर साइंस की प्रारम्भिक पढ़ाई कराते हैं और मेंटर का काम करते हैं। इसीलिए अब वहां उनके बचपन के साथी लोग अजय को अजय द ग्रेट भी कहने लगे हैं।

अजय से क्या मिलती है हमें सीख?

अजय की इस कहानी से युवाओं को सीख मिलती है कि बुरे दौर से घबराना नहीं चाहिए। संघर्ष को रूपान्तिरित कर उसे सकल्प शक्ति में परिवर्तित करने का काम करना चाहिए। अजय के ऊर्जा रूपांतरण ने ही एक महान कामयाबी दी है। वे कहते भी है कि युवाओं को अपनी कमजोरी को चुनौती के रूप में लेकर उसे दूर करना चाहिए। इससे जीवन में बेहतर अवसर मिलेंगे।

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