Exclusive Riport: डुमरियागंज लोकसभा सीट से है कोई ‘माई का लाल’ बसपा का टिकट लेने वाला?

January 25, 2024 2:08 PM0 commentsViews: 871
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नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। बहुजन समाज पार्टी का किसी वक्त यह जलवा था कि हाथी के निशान पर चुनाव लड़ने के लिए चुनाव बाज कभी लाखों रुपये लुटाने को तैयार रहा करते थे  और आज हालत यह है कि कोई उसी हाथी को दमड़ी के मोल भी लेने को राजी नहीं है। लिहाजा बसपा के जो नेता कभी कुर्सी पर बैठ कर चुनाव बाजों की कतार में से तगड़ा असामी छांटते थे आज वहीं लोग लोकसभा डुमरयागंज से चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार तलाश रहे हैं।

क्या है बसपा की विडम्बना

यह बसपा की विडम्बना ही है कि जिस डुमरियागंज सीट से साल भर पहले ही टिकटार्थियों की कतार लगती थी तथा उसमें से किसी एक को छांटना भी कठिन काम होता था, आज उसी बहुजन समाज के कतिपय स्थानीय नेता खुद लोगों से मिल कर उन्हें बसपा से चुनाव लड़ने के      लिए प्ररित करते देखे जा रहे हैं। लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिल पा रही है। ऐसे में लगता है कि आगामी चुनाव में बसपा यहां से अपने पुराने तेवर में लड़ पाने में विफल रहेगी और उसे यहां से प्रतीकात्मक रूप से चुनाव लड़ना पड़ेगा। इस बार के चुनाव में बसपा की अग्नि परीक्षा होगी, जिससे यह पता चल सकेगा कि उसका अपना कोर वोट (दलित) भी बच पायेगा या नहीं?

दर असल पिछले कई वर्षों में बसपा ने राजनीति में जिस प्रकार समय समय पर पल्टी खाई है, उसके असर से डुमरियागंज भी अछूता नहीं है। बसपा सुप्रीमों की भाजपा से बारम्बार निकटता के कारण जिले का मुस्लिम मतदाता बसपा से बहुत दूर जाता दिख रहा है। यही कारण है कि इस बार जिले से कोई मुस्लिम लीडर बसपा से टिकट लेने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। वरना गत चुनाव तक यहां से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वालों में मुस्लिम लीडर सदा आगे रहा करते थे। स्व. कमाल यूसुफ, मो. मुकीम तथा आफताब आलम जैसे कद्दावर ल़ड़ाके यहा से चुनाव लड़ चुके हैं। मगर अब न तो वे अथवा उनके उत्तराधिकारी ही अब इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक अबूबकर कहते हैं कि मायावती पहले ही भाजपा के साथ को लेकर बदनाम थीं, मगर इस बार संसद में भाजपा नेता द्वारा बसपा सांसद दानिश अली के अपमान पर बहिन जी की चुप्पी तथा इंडिया एलायंस से उनके बाहर रहने की घोषणा से मुसलमान उनसे पूरी तरह दूर हो गया है।

राजनीतिज्ञ क्यों नही चाहते टिकट

एक अन्य समीक्षक शहनवाज के अनुसार बसपा का सोशल इंजनीयरिंग भी पूरी तरह फेल हो चुकी है। पूर्व की भांति न तो उसके साथ ब्राह्मण वोट बचा है न ही अति पिछड़ों का वोट। दलित वोटों में उनका कोर वोट (जाटव) मात्र १२ प्रतिशत ही उनके साथ रह गया है। ऐसे में काई हाथी का सिम्बल लेकर अपने करोड़ों रुपये क्यों बर्बाद करना चाहेगा। मुसलमानों को यह समझ में आ गया है कि बसपा का हाथी अब बेदम और जीर्णशीण है। उसकी सवारी से अब कोई लाभ नहीं होने वाला। यही कारण है कि इस बार कोई मुस्लिम या ब्राह्मण नेता बसपा के टिकट के लिए प्रयास करता नजर नहीं आता। इससे बसपा के टिकट की हालत उस खट्टी दही के मानिंद हो गया है, जिसे घर घर दही दही चिल्लाते हुए बेचने की कवायद की जा रही है। इसके अलावा जिले में बसपा का कोई ऐसा नेता भी नहीं है जो कद्दावर हो और लोकसभा चुनाव लड़ सके। ले देकर एक इरफान मलिक हैं जो अभी विधानसभा चुनाव पर ही ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। इसके अलावा एक दलित नेता कन्हैया कन्नौजिया ही बचते हैं। वह सक्षम तो हैं मगर बसपा इस मुस्लिम व ब्राहमण बाहुल्य सीट से दलित को लड़ाने में शायद ही भरोसा करे। इन हालात में यहां से बसपा का कैंडीडेट कौन बनेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

 

 

 

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