Exclusive- छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में वोटरों की खामोशी और सफर में ‘सरकार”

November 6, 2018 11:42 AM0 commentsViews: 279
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— इलेक्शन एक्सप्रेस

 

छत्तीसगढ़ से कमलेश पांडेय की रिपोर्ट

छत्तीसगढ़। ये जम्हूरियत की नब्ज है। टटोलना आसान कहां? वोटर पहले जैसे मुखर भी तो नहीं। फिर भी चुनाव तो चुनाव है। रोचकता रहेगी। चर्चा भी होगी। मैदान सज चुका है। नेता मैदान में हैं। घर-घर मनुहार का दौर है लेकिन चौपालों पर अब वह पुरानी चुहल भी नहीं। अलबत्ता ट्रेन हो या बस, सफर में हर रोज सरकार बनती-बिगड़ती है। छोटे-छोटे समीकरण पर कभी रमन सरकार वापसी कर लेती है तो कभी कांग्रेस का वनवास दूर हो जाता है। कुछ पल में ही नजारा एक दम बदलता है और जोगी किंगमेकर बन सामने होते हैं। केजरीवाल भी चर्चा में प्रभाव छोड़ते नजर आते हैं। ये सफर है। सब मुसाफिर हैं। वोट है या नहीं पर मन चुनाव में है। मानो सरकार इन्हें ही बनानी है।

कोलकाता से वापसी करते हुए अभी हम टाटानगर में हैं। ट्रेन रायपुर की ओर रुख कर चुकी है। यह झारखंड का इलाका है लेकिन सरकार छत्तीसगढ़ की बनाई जा रही है। यह लोकतंत्र में गहरी रुचि का प्रतीक है। यह जनतंत्र की खूबसूरती भी है। देश में कहीं भी चुनाव हों, कश्मीर से कन्या कुमारी तक की निगाह होती है। बर्थ पर सामने एक बुजुर्गवार हैं। कितने राजनीतिक पारखी हैं बता पाना मुश्किल लेकिन चर्चा में उनसे कोई पार नहीं पा सकता। वह केवल छत्तीसगढ़ पर केंद्रित नहीं रहना चाहते। उन्हें शिवराज की चर्चा में भी मजा आता है और वसुंधरा की चर्चा में भी।

बात छत्तीसगढ़ की निकली तो छत्तीसगढ़िया यात्री खुद को कहां रोक पाते। महज 27-28 साल का युवा यात्री बेरोजगारी का सवाल उठाता है। मोदी उसके आइडियल हैं लेकिन बेरोजगारी पर चर्चा में उसका आक्रोश झलक ही उठता है। इसी का फायदा एक और सहयात्री उठाता है और कांग्रेस का वनवास दूर हो जाने के समीकरण गिना देता है। झट उसकी बात एक और छत्तीसगढ़िया यात्री काट देता है। गरीबों में चावल के  दम पर वह रमन की ताजपोशी के समीकरण गिना देता है। बुजुर्गवार दोनों की बात पर सहमत नहीं हो पाते।

उन्हें जोगी और माया के गठबंधन का मायावी तिलिस्म दिखाई देता है। वह इसी तिलिस्म को तोड़ पाने की कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चुनौती बताते हैं। उन्हें जोगी में किंगमेकर दिखता है। एक महिला यात्री भी हैं। काफी पढ़ी लिखी स्मार्ट नजर आती हैं। दो महंगे फोन अपने पंजों में फंसाए हुए। खुद को अपने में व्यस्त दिखाती हैं लेकिन चर्चा छत्तीसगढ़ चुनाव पर थी तो खुद को वह भी रोक नहीं पातीं। अंतत: कूद पड़ी वह भी सरकार बनाने में। उन्हें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की छत्तीसगढ़ में दस्तक बड़ा संदेश देती प्रतीत होती है। वह इसके निहितार्थ भी बताती हैं। कहती हैं देखते जाइए, केजरीवाल की यह लोकसभा की तैयारी है। यात्री और भी हैं। सब के अपने-अपने विचार। यानी जितने यात्री उतनी राय। सब अपनी-अपनी सरकार गढ़ रहे होते हैं।

मैं मूकदर्शक बना पूरी खामोशी से मूड मिजाज परखना चाहता हूं। कुछ भी समझ नहीं आता। हवा का रुख आखिर है किधर। जैसे मतदाता खामोश वैसे ही हवा भी खामोश। राजनीतिक दल इसी खामोशी से हैरान हैं। परेशान हैं कि यह चुप्पी टूटती क्यों नहीं। हवा का रुख स्पष्ट क्यों नहीं होता। जो जिसका समर्थक, वही बना रहा उसकी सरकार। …और सरकार बनाने वाले? वह तो मानो मतदान के दिन ही अपने पत्ते खोलने के मूड में हैं। रायपुर स्टेशन पर ट्रेन पहुंचने को है लेकिन सरकार किसकी बनाकर सफर पूरा किया यह तो गड्ड-मड्ड हो गया। सो छोड़ दिया सरकार के खेल को जनादेश पर।

 

 

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