मायावती की सभा के बाद गठबंधन के हौसले बुलंद, कांग्रेस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटी

May 4, 2019 3:33 PM0 commentsViews: 949
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नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। खराब मौसम, छिटपुट बारिश और जुमे का दिन होने के बावजूद   कल सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय पर मायावती की विशाल जनसभा के बाद गठबंधन के हौसले बुलंद हैं। अब उसने दो गुनी ताकत से भाजपा पर हमला करने की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है। इसके बरअक्स भाजपा रक्षात्मक दिख रही है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है वह लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने के प्रयास में है, लेकिन उसे अभी तक वांछित सफलता नहीं मिल पा रही है।

विपरीत हालात में मायवती की जनसभा  रही कामयाब

बता दें कल कल सिद्धार्थनगर में बसपा सुप्रीमों मायावती की जनसभा थी। सभा की पूर्व संध्या से ही मौसम खराब था। उनकी सभा के दौरान भी बरसात हुई। यही नहीं उस दिन जुमा था। आम ख्याल था कि मुस्लिम की भागीदारी कम होगी, लेकिन सपा बसपा के वोटबैंक को बारिश जरा भी नहीं रोक पायी। यही नही तमाम मुसलमानों ने सभा में शिरकत की और नमाज के वक्त अगल बगल की मस्जिदों में भाग कर नमाज अदा की। विपरीत हालात में मायावती की सफल सभा बहुत कुछ स्पष्ट करती है।

2014 की मोदी की सभा के बराबर थी मायावती के सभ

मायावती की सभा से जनता के सत्ता विरोधी रुझान का अंदाजा लग जाता है। सन 2014 में उसी मैदान पर मोदी भी जनसभा करने आये थे।यह उनकी जिले में पहली जनसभा थी। लेकिन जिले में बार बार आने वाली मायावती की जनसभा में मोदी जैसी भीड़ के जुटने का संकेत समझा जा सकता है। विपरीत हालात में मोदी की टक्कर की जनसभा से जनता में सत्ता विरोधी लहर का एक संदेश तो गया ही है।

लेकिन जगदम्बिका पाल हैं राजनीति के चतुर खिलाड़ी

कपिलवस्तु पोस्ट लिखता आ रहा है कि भाजपा प्रत्याशी जगदम्बिका पाल राजनरीति के चतुर खिलाड़ी हैं। गठबंधन उम्मीदवार आफताब आलम  उनके आगे बहुत अनुभवहीन हैं। इसलिए पूर्व सांसद पाल के तरकश् के तीर का अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन हवा भाजपा के विपरीत है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पाल आने वाले दिनों में कौन सा दांव अपनाते हैं।‘

चन्द्रेश कर रहे चुनाव का तीसर कोण बनने का कोशिश

इस चुनाव में भाजपा छोड कर कांग्रेस से टिकट ले कर लड़ रहे चन्द्रेश उपाध्याय इस लड़ाई को तीसरा कोण बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। लेकिन अभी तक उन्हें सफलता मिलती दिख नही रही है। उनके पीछे कांग्रेस के पुराने समर्थक और उनके सजातीय ही बहुत खुल कर उनके साथ नहीं हैं। इसलिए मुस्लिम भी उनको भाव देने को तैयार नहीं दिख रहा। चुनावी युद्ध को तिकोना बनाने के लिए अभी डा. चन्द्रेश को काफी मेहनत करने की जरूरत है।

कागजी आंकडे में सीधी दिख रही लड़ाई

जहां तक कांगजी लड़ाई की बात है तो कागज पर बसपा बहुत मजबूत दिख्रती है। गठबंधन के वोटों में सबसे प्रतिबद्ध 30 फीसदी मुस्लिम, 19 प्रतिशत और 9 फीसदी यादव वोटों में कम से कम 6 फीसदी यादव गठबंधन के पक्ष में खड़ा दिखता है। ऐसे में गठबंधन के 55 में से भाजपा के समक्ष 6 प्रतिशत वोटों को तोडने की की चुनौती है, जो भाजपा के लिए कठिन लगती है।  जगदम्बिका पाल इसी गणित को सुधारने में लगे है। हालांकि गत दिवस शोहरतगढ़ में उनकी अनुप्रिया पटेल को लाकर पिछड़ों को पटाने की पहली कोशिश नाकम साबित हुई है।

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