गोरखपुर विश्वविद्यालय में लोकतंत्र संकट में, 25 छात्र नेताओं को पुलिस ने जारी किया रेडकार्ड
हितेश सिंह
गोरखपुर। पं. दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर को अब लोकतांत्रिक संघो से डर लगने लगा है। इस संघो में सबसे अधिक तेज से भरपूर व जागरूक छात्र संघ होता है. इसलिए प्रशासन कोई न कोई बहाना करके इसे समाप्त करने का प्रयास करता रहा है। गत दो वर्षों से वहाँ छात्रसंघ के चुनाव नहीं हुए। जब छात्र नेता अपने छात्रसंघ के अधिकार के लिएे लोकतांत्रिक तरीके से मांग रखते तो उन्हें विभिन्न तरीके से प्रताड़ित किया गया। सत्ता का दुरुपयोग करते हुए बल प्रयोग कर आंदोलन को समाप्त करने की कोशिश की गई, कानूनी धमकियां दी गयी, कइयों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए।विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रतिबंधित किया गया। पर साहसी युवा , छात्र नेता हार नहीं माने।
अब सत्ता अपने अंतिम हथियार को आजमा रही है । तत्काल में विश्वविद्यालय के 25 छात्रनेताओं के खिलाफ पुलिस ने रेडकार्ड जारी किया और उन्हें चेतावनी दी गयी है कि अगर वे अपनी गतिविधियों पर विराम नहीं लगाए तो उन पर कठोर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
यह घटना केवल छात्र नेताओं के साथ नहीं हो रही है बल्कि सवाल पूछने वाले विश्वविद्यालय के हर व्यक्ति के साथ हो रही है। विश्वविद्यालय के शिक्षक, छात्र के सोचने के आयाम को विस्तृत करते हैं। उन पर जागरूक नागरिक तैयार करने की जिम्मेदारी होती है. इसलिए वे दुनिया के श्रेष्ठ विचारों से छात्रों को परिचित कराते हैं और उनको ऐसा करने में हर प्रकार की आजादी होती है.
परन्तु गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को ही अभिव्यक्ति कि आजादी से वंचित किया जा रहा है. विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों ने शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाया था और उसमें पारदर्शिता की मांग की थी, परन्तु उनका सवाल उठना विश्वविद्यालय प्रशासन को पसंद नहीं आया क्योकि विश्वविद्यालय प्रशासन में तानाशाही प्रवृति के लोगो का कब्जा है जो लोकतंत्र का दमन करना चाहतें हैं। आज कुलपति द्वारा सवाल उठाने वाले प्रोफेसरों पर कार्यवाही की जा रही है।
अधिकारों के लिए लड़ने वाले , सवाल उठाने वाले ये छात्रनेता, अध्यापक लोकतंत्र के सच्चे प्रतिनिधि हैं और अब इनके साहस को बनाये रखने की जिम्मदारी आम छात्रों और नागरिकों पर है. हो सकता है आपमें से बहुत से लोग यह सोचते हो कि हमें विश्विद्यालय से क्या मतलब तो आप गलत हैं. विश्वविद्यालय ही हमारे समाज और देश की दिशा तय करते हैं. यही से हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य तय होता है, इसलिए इसको मूल स्वरूप को बचाने की जिम्मेदारी हम सब की है.
हमें आगे आना ही होगा क्योंकि यदि लोकतंत्र सिखाने वाली संस्था में लोकतंत्र नहीं बचेगा तो आने वाली पीढ़ी लोकतंत्र को भूल जाएगी। यदि यहां लोकतंत्र नहीं बचेगा तो संविधान नहीं बचेगा. संविधान नहीं बचेगा तो देश नहीं बचेगा, समाज नहीं बचेगा। लोकतंत्र नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे। इन छात्रनेताओं, अध्यापकों का साथ दीजिये कि लोग सवाल पूछते रहे। साथ दीजिये कि इन लोकतंत्र प्रहरियों का साहस बना रहे. साथ दीजिये की लोकतंत्र बचा रहे. लोकतंत्र जिंदाबाद. संविधान जिंदाबाद.
(लेखक गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं और वर्तमान में मेरठ के एक कालेज में शिक्षक हैं )