उफǃ ये गरीबी और बदनसीबीः तीनों बेटों की मौत के बाद बूढ़े मां-बाप पर पूरे परिवार का बोझ

March 24, 2024 1:10 PM0 commentsViews: 479
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पहले बेटे की रोड एक्सीडेंट में गई जान, मझले  बेटे की मौत गंभीर बीमारी से हुई,  गरीबी और भुखमरी से आजिज आकर तीसरे बेटे ने खुद दे दी जान

नजीर मलिक

 

सिद्धार्थनगर। परशुराम के तीनों बेटे एक एक कर काल के गाल में समा गये। अब घर में उनके अलावा विधवाओं और उनके बच्चों का भरा पूरा परिवार है। परशुराम के पास मात्र आधा बीघा जमीन है। ऐसे में 9 लोगों का लीवन सापन कैसे होगा, चिंता का यह बोझ परशुराम पर इतना भारी है कि उसे अपने सबसे छोटे बेटे की मौत का गम भी महसूस नहीं हो रहा। 70 साल के बुजर्ग परशुराम घर पर संवेदना व्यक्त करने वालों से सिर्फ इतना ही कहते हैं कि अब परिवार का गुजा बसर कैसे होगा? कुल मिला कर पेट की चिंता ने एक बाप के सामने जवान बेटे शैलेष की मौत के गम को क्षीण कर दिया है।

कैसे हुई सबसे छोटे बेटे की मौत

मामला खेसरा थाना क्षेत्र के ग्राम बेलवा लगुनही गांव है। यहां परशुराम के घर पर लोगों की भीड़ लगी है। उनके 21 वर्षीय बेटे शैलेष ने गरीबी और लाचारी से तंग आकर स्वयं का अत्मदाह कर लिया। अकेला शैलेष ही मजदूरी कर बूढ़े माता पिता और दो विधवा भाभियों और उनके पांच बच्चों का भरण पोषण करता था। उसने आर्थिक दबाव के चलते अपनी शादी भी नहीं की थी। इधर कमर के भयानक दर्द के कारण वह मजदूरी भी नहीं कर पा रहा था, जिससे परिवार भुखमरी के कगार पर था। इसी शाररिक और मानसिक दबाव के आगे वह टूट गया और शुक्रवार को उसने आग लगा कर खुद की इहलीला समाप्त कर लिया।

रो-रो कर बेहाल हैं मां बाप

शैलेष की मौत के बाद उसकी बूढ़ मां की आंखों से आंसुओं की घर तीसरे दिन भी नहीं थम सकी है। वह अब तक पछाड़ें खाकर विलाप कर रही है। दूसरी तरफ बूढ़े बाप परशुराम घर पर बैठे शून्य में आंखें गडाये अपने पोते पातियों के भविष्य कीचिंता में लीन है। संवेदना व्यक्त करने आने वाले हर आदमी से कहते हैं कि अब परिवार का क्या होगा। पोती सयानी हो रही है उसकी शादी, अबोध पोतों की पढ़ाई इत्यादि कैसे होगी? यह कहते हुए वह पथराई आंखों से शून्य में ताकने लगते हैं।

दो अन्य बेटों की हुई थी दर्दनाक मौत

दरअसल उनके सबसे छोटे बेटे शैलेष की मौत के दो वर्ष पूर्व उसके भाई धर्मेंद्र की गंभीर बीमारी के दौरान मौत हो गई थी। उसके दो छोटे बच्चे थे। उसकी बीमारी में घर की सारी जमा पूंजी स्वाहा हो गयी थी, तब से शैलेष ही परिवार का बोझ उठा रहा था। शैलेष के सबसे बड़े भाई जगनारायन की आठ वर्ष पूर्व  एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। वह वाहन चालक था। उसके भी दो बटिया और एक बेटा था। इस प्रकार एक एक कर तीनों ही भाई कुदरत के कहर से खत्म हो गये।  अब मात्र 17 मंडी जमीन से यह 9 लोगों का यह परिवार कैसे चलेगा वह भी जब घर का एक मात्र मर्द 70 साल का बूढ़ा हो। दरअसल पशुराम के समक्ष यही वह चिंता है, जो बेटे के मौत के गम पर भारी पड़ रही है। इसीलिए किसी ने लिखा है क़ि-देने वाले किसी को गरीबी न दे, दे दे मगर बदनसीबी न दे।

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