त्यौहार, देश और दरिद्रनायाण की सेवा तब होगी, जब आप चाइनीज झालरों के बजाए खरीदेंगे गरीब कुम्हारों के दीये

November 7, 2015 10:46 AM0 commentsViews: 592
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नजीर मलिक

deepak
कहां तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए, कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। हिन्दी के मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां शायद चिराग बनाने वाले कुम्हार पर सटीक बैठती हैं। महंगाई और चाइना बाज़ार की व्यापकता में हाथ की पारम्परिक कारीगरी अब दम तोड़ने को मजबूर है। प्लास्टिक के मकड़ जाल में मिट्टी के सामान उलझ से गए हैं। दीपावली पर सैकड़ों दिये खरीदने वाले अब सिर्फ धन की देवी लक्ष्मी के सामने ही दिये जलाते हैं। सजावट के स्थानों पर अब झालरों का इस्तेमाल करते हैं।

दीवाली की खरीदारी में निकलने से पहले तनिक क कर सोच लें ! रोशनी और उजालों के इस पर्व में आपके थोड़े से स्नेह, आपकी थोड़ी चिंता और सहयोग की ज़रुरत किसे है। साम्राज्यवादी और अहंकारी चीन की अर्थव्यवस्था को या अपने देश के गरीब और हाशिए पर खड़े कुम्हारोंए और कारीगरों को।

हम आम लोग अपने शिल्पकारों की गरीबी तो दूर नहीं कर सकतेंं, लेकिन कुछ दिनों के लिए उनके घरों में और चेहरों पर मुस्कान तो निश्चित ही लौटा सकते हैं। जाने कितने सपने देखें होंगे उन्होंने अपने बनाए दियों और कलाकृतियों के आईने में।

आईए इस दीवाली चीन में बने रंगीन दियों और सजावट के विदेशी सामानों काे नजरअंदाज करें ! घरों में मिट्टी के दीये जलाएं ! सजावट के लिए गरीब कारीगरों द्वारा निर्मित मूर्तियों, हस्तकलाओं और कलाकृतियों का प्रयोग करें ! क्या पता हमारे छोटे से सहयोग से उनके बड़े सपने पूरे हो जाएं !

सिद्धार्थनगर जिले में तकरीब 12 हजार गरीब दीपावली के लिए दीपक बनाने के काम में लगते हैं। इसी तरह प्रदेश और देश भर में इनका आंकडा लाखों में जाता है। यह सब कुम्हार जाति के हैं, जो सामाजिक ही नहीं आर्थिक तौर पर भी पिछड़े हैं। दीवाली दशहरा के पर्व ही इनकी जीविका का साधन हैं।

लेकिन आज हालात बदल गये हैं। चाइना की झालरों से देश पट गया है। लिहाजा इन गरीबों के दिए अब न के बराबर बिक रहे हैं। इन दियों को छोड़ कर चाइनीज झालरें अपनानें से अब कीट पतंगों से भी घर मुक्त नहीं हो पा रहा है।

सोचना आपको है, अगर आप गरीब कुम्हारों के दिए खरीदते हैं तो उन्हें आप एक तरह से जीने का सहारा देते है। दियों के सहारे घर का वातावरण शुद्ध रखते हैं और देश का पैसा देश में ही रखते हैं। तो आइये संकल्प लें कि इस बार हम दीपावली पर मिटृटी के दिए खरीदेंगे, चाइनीज झालर नहीं।

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