मरने से पहले अपने अबोध बेटे को जहर देते वक्त बाप का हाथ क्यों नहीं कांपा ?
उच्चस्तरीय जीवन शैली की वजह से बेटे के साथ जान दिया
पिता देवहंस ने कहा- सच हुआ आमदनी से ज्यादा खर्च का अंजाम
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। मंगलवार को पथरा थाना ग्राम तिगोड़वा के पास कार में मिली बाप बेटे की लाश का रहस्य खुलता नजर आ रहा है। बेटे को कार में घुमाने के बहाने बाप देवहंस चौबे ने उसे जहर देकर खुद भी जहर खा लिया था। एक बाप द्वारा अपने 11 साल के बेटे को जहर देते समय उनके हाथ क्या नहीं कांपे होंगे ? लगता है कि उनकी विपदा काफी बड़ी थी, जिसके कारण वह ऐसा करने पर मजबूर हुये होंगे।
इस बारे में क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि देवहंस के घर में आये दिन गृहकलह होने से उन्होंने ऐसा किया। मगर सवाल उठता है कि फिर उन्होंने मासूम बेटे की जान क्यों ली? यह सामान्य बात नहीं है, इसके लिए हमे देवहंस चौबे की पारिवारिक जटिलताओं को समझना पड़ेगा। जिसके चलते हालात इतने दर्दनाक हुए।
खेसरहा थाना के विशुनपुर चौबे निवासी 38 वर्षीय हंसदेव चौबे एक इज्जतदार घराने के थे। पढ़े लिखे थे लेकिन कोई व्यवसाय या नौकरी न थी। ऊपर से ठाठबाट से जिंदगी जीने के आदी थे। उनकी 12—13 साल पहले शादी हुई उसके बाद खर्चे और बढ़े तो वे धीरे घीरे पूर्वजों से मिले खेत बेचने लगे। उच्चस्तरीय जीवन शैली और नशे की आदत के कारण खर्च बढ़ने लगे, खेत घटने लगे। बताते हैं कि चार दिन पूर्व भी पत्नी से खेत बेचने के मसले पर झड़प हुई थी और उसके बाद वे घर से निकल गये थे।
गांव वाले बताते हैं कि वह अपने इकलौते बेटे डेविड की शिक्षा दीक्षा पर भी बहुत खार्च करते थे। उनकी इस जीवन शैली से उनकी पत्नी बहुत परेशान थीं। उनमें आये दिन बहुत लड़ाई झगड़े होते थे। आखिर घटते खेत और पत्नी के हस्तक्षेप से रोज रोज होने वाली कलह के कारण देवहंस ने भयानक निर्णय लिया और शनिवार को बेटे को कार में लेकर निकल पड़े। वह दुबौली स्थित अपनी बहन के घर होते हुए मंगलवार को तिगोड़वा गांव के पास पहुंचे। माना जाता है कि वही उन्होंने कोल्डड्रिंक में जहर मिला कर पहले बेटे को दिया और फिर खुद पी लिया।
बेटे ने तो वहीं दम तोड़ दिया मगर देवहंस अस्पताल में घटना के बारे में मृत्यु से पहले सब कुछ बता गये। इस प्रकार आय न होने के बावजूद खर्चीली जीवन शैली के चलते पिता ने खुद के साथ अपने मासूम बेटे को भी अनन्त सफर के हवाले कर दिया। बड़े बुजुर्गो ने इसी लिए कहा है कि ‘आमदनी अठन्नी खर्च रूपइया से अच्छा है, कुछ कम खाओ, कुछ गम खाओ’।






