पोस्टमारर्टम- डुमरियागंज की मुस्लिम सियासत में एक डाक्टर सौ मरीज की हालत, कैसे हो इलाज

January 15, 2021 2:19 PM1 commentViews: 1407
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सन 1952 से 1985 तक भाजपा (जनसंघ) केवल एक बार जीती, 1989 से धर्मनिरपेक्ष राजनीति पर भारी पड़ने लगी भाजपा

नजीर मलिक

डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर। आगामी विधानसभा चुनावों की रूपरेखा बनने लगी है, चुनाव लड़ने के दावेदार लोग अपने अपने सियासी सम्पर्क बनाने में लग गये हैं। डुमरियागंज विधानसभा में भी इन हलचलों को समझा जा सकता है। भाजपा निश्चित है, उसका प्रत्याशी तय ही है। अन्य दलों को प्रत्याशियों की तलाश है। हैरत की बात यह है कि एक दो को छोड़ कर इन दलों से टिकट के बाकी सारे दावेदार मुस्लिम हैं।

विधानसभा में मुस्लिम वोट 37.99 प्रतिशत हैं। मगर सामने कम से कम आधा दर्जन दलों से टिकट के दावेदार मुस्लिम ही दिखते हैं।  यानी डाक्टर (मतदाता) एक है तो मरीज (उम्मीदवार) सौ हैं। यही करण है कि डुमरियागंज क्षेत्र चुनाव में मुस्लिम जीत का प्रतिशत लगातार घटता जा रहा है। ऐसा क्यों हुआ, आइए इसे चुनावी इतिहास से समझते है।

क्या रहा है सन 1952 से चुनावी इतिहास

आजादी के बाद से भारत में चुनावी प्रक्रिया शुरू हुए 68 सठ साल हो चुके हैं। डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में होने वाले इन 68 सालों की चुनावी राजनीति को दो हिस्सों में बांट कर देखा जा सकता है। एक चरण में जहां भाजपा (तत्कालीन जनसंघ) को लगातार शिकस्त मिली, और दूसरे चरण में उसी भाजपा को हराने का सपना अब केवल सपना बन कर रह गया है। 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव के बाद से 1989 तक केवल सन 67 के चुनाव को छोड़ कर डुमरियागंज में मुस्लिम राजनीति का बोलबाला रहा। वर्ष 1974 तक यहां कांग्रेस और उसके नेता स्व. काजी जलील अब्बासी का बोलबाला रहा। काजी साहब मिनिस्टर भी रहे।

1977 में देश में भारी राजनीतिक परिवर्तन हुआ। कांग्रेस हारी लेकिन विधायक फिर भी मुस्लिम ही चुना गया। इस बार कमाल युसुफ मलिक जनता पार्टी के रूप में चुने गये जो सन 1989 तक लगातार विधायक रहे। 89 में कमाल युसुफ हारे तो फिर मुस्लिम लीडर हारते ही गये। बाद के इन 31 सालों में कमाल युसुफ व मलिक तौफीक जहां दो दो बार जीते वहीं भाजपा को चार बार जीत मिली। वर्तमान में भाजपा से राघवेन्द्र सिंह क्षेत्रीय विधायक हैं।

सर्वोत्तम प्रत्याशी का चुनाव जीत पाना फिलहाल कठिन

सन 89 से 2017 के बीच भाजपा की उक्त चार जीतें बहुत महत्वपूर्ण हैं। हालांकि तब दो ही मुस्लिम उम्मीदार होते थे और तल्ख माहौल होते हुए भी धर्मनिरपेक्ष वोटर भी इन मुस्लिम नेतओं के साथ् खड़े रहते थे। मगर अब साम्प्रदायिकता और बढ़ी है, मगर मुस्लिम उम्मीदवारों में इजाफा भी उतनी ही तेजी के साथ बढ़ा है। उस बार डुमरियागंज से कांग्रेस से डाक्टर बख्तियार उस्मानी, कांग्रेस अध्यक्ष काजी सुहैल अहमद, कमाल युसफ मलिक, व सैयदा खातून सपा या बसपा से, अफरोज मलिक कांग्रेस सपा या बसपा से चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं। इसके लिए वे सियासी बाजियां बिछाने में जुटे हैं। ऊपर  से डा. अयूब की पीस पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएर्अएम भी कोई न कोई मुस्लिम उम्मीदवार लड़ायेगी ही। कुल मिला कर डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र से कम से कम पांच मुस्लिम उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने के आसार हैं।

जाहिर है कि जब  सन 89 से 2017 तक हुए आठ चुनावों में भाजपा चार बार चुनाव जीती वह भी दो मुस्लिम उम्मीदवारों से लड़ कर तो इस बार पांच मुस्लिमों के लड़ने पर भाजपा के लिए चुनाव परिणाम क्या होगा, इसे सहज समझा जा सकता है। इसलिए इस बार मुस्लिम ही नहीं धर्मनिरपेक्ष हिंदू मतदाताओं के सामने भाजपा के मुकाबले किसी सर्वोत्तम मुस्लिम प्रत्याशी का चुनाव कर उसे जिता पाना तो फिलहाल कठिन दिखता है।

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