यादेंः डुमरियागंज का पहला चुनाव जब वोटर बिरयानी खाते फिर बैलेट पर मुहर लगाते

January 11, 2022 2:21 PM0 commentsViews: 485
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बिरयानी खिलाने वाले गुलाम हुसैन पेड़ारा की जमानत हुई जब्त और फक्कड़ काजी अदील अब्बासी को मिली शानदार फतह

नजीर मलिक


सिद्धार्थनगर। इस बार के चुनाव में प्रचार प्रसार डिजिटल तरीके से होने जा रहा है। एक दशक पहले तक गांवों में गीत गाने वाली टोलियां गाते बजाते अपने प्रत्याशी का चुनाव प्रचाार करती थीं। मगर सोचिए स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव कैसा रहा हेगा। उस समय भारत में गरीबी और अशिक्षा दोनों थी। लोग गाय के गोबरों में से गेहूं के दाने बीन कर उसका आटा बनाते थे तब पेट भरते थे। मगर उस समय प्रथम विधानसभा चुनाव में मतदान के दिन एक प्रत्याशी ने प्रत्येक वोटर के बिरयानी की व्यवस्था कर रखी थी। पहले वोटर उसके कैम्प में जाकर खाना खाते फिर जाकर वोट डालते। मगर हैरत है कि इतनी बेहतर व्यवस्था के बावजूद न केवल वह प्रत्याशी हारा बल्कि उसकी जमानत तक जब्त हो गई।

स्वतन्त्र भारत का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था। उस समय डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उर्दू अदब के मूर्धन्य नाम स्व. काजी अदील अब्बासी साहब मैदान में थे। उनके मुकाबले में बस्ती के गनेशपुर निवासी और एक छोटी रियासत के मालिक गुलाम हुसैन साहब थे जो गुलाम हुसैन पेड़ारा के नाम से जाने जाते थे।

अदील अब्बासी साहब फक्कड़ स्वभाव के थे। वैसे भी कांग्रेस के सिपाही होने कारण चुनाव पूरी सादगी से लड़ रहे थे, उनके मुकाबले गुलाम हुसन पेड़ारा के पास धन की कमी न थी। गांव गांव में नौटंकियों का आयोजन, दिन के समय गाने वाली एक दर्जन टोलियां घेड़ा गाड़ी आदि सब कुद था। जनता चुनाव में दिनरात मनोरंजन कर रही थी। दारू शराब पैसे की कोई कमी नहीं थी। लग रहा था कि उनके मुकाबले काजी अदील अब्बासी साहब टिक न पायेगे।

मतदान का दिन आ गया। गुलाम हुसैन पड़ारा ने हर पोलिग स्टेशन पर बिरयानी और शकाहारी खाने की व्यवस्था कर रखी थी। उनका फरमान था कि लोग उनके पांडाल में आकर खाना खाएं तब वोट डालने जाएं। इसके लिए शाकाहारी और मांसाहारी बावर्चियों की व्यवस्था अलग से की गई थी। लोग सवेरे से ही उनके कैम्प में बिरयानी खाकर वोट डालना शुरू कर दिये थे। कयासबाज गुलाम हुसैन की बड़ी जीत की घोषणा कर चुके थे।

लेकिन जब मतगणना हुई तो सारी कयाबाजी गलत साबित हुई। अजेय समझे जाने वाले गुलाम हुसैन के बजाये काजी अदील अब्बासी जीत गये थे और गुलाम हुसैन की जमान्त तक जब्त हो गई थी। इसके बाद गुलाम हुसैन पेड़ारा ने चुनाव लड़ने से तौबा कर लिया। अदील अब्बासी साहब ने 57 के चुनाव में जनसंघ के जयद्रथ को हराया। बाद में 62 के चुनाव में राजनीति से सन्यास लेकर छोटे भाई काजी जलील अब्बासी साहब को चुनाव लड़ कर विजय दिलाई।

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