मायावती की हाथी की चाल तय करेगी डुमरियागंज की राजनीतिक दिशा

February 19, 2022 1:38 PM0 commentsViews: 748
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मुस्लिम वोटरों की खामोशी से कई दिग्गज उम्मीदवारों के दिल की धड़कनों में इजाफा, चुप्पी टूटने का बेचैनी से इंतजार कर रहे लोग

 

नजीर मलिक

 

सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज सीट पर चल रहे चुनावी संघ में दिलचस्प मोड़ आ गया है। पिछले एक पखवारे में बहुजन समाज पार्टी की हाथी ने बड़े सघे हुए अंदाज में अपनी चाल दिखाई है। इस कारण वह तेजी से न केवल मुख्य चुनावी दौड़ में शामिल हो गई है बल्कि अपनी चाल से उसनें अन्य कई दलों के उम्मीदवारों की राजनीकि दिशा में तय करनी शुरू कर दी है। दूसरी तरफ मुस्लिम वोटरों में उहापोह के कारण अचानक छाई चुप्पी ने भी कई प्रत्याशियों को बेचैन कर दिया है। वे उनकी खामोशी टूटने का बैचैनी से इंतजार कर रहे हैं।

सधी चाल से बढ़ रहे बसपा के अशोक

408327 मतदाताओं वाली इस सीट पर जातीय समीकरण के हिसाब से सबसे सुविधाजनक स्थिति में बसपा उम्मीदवार अशोक तिवारी दिखते हैं। उनके पास 68 हजार (17 प्रतिशत) दलित और 44 हजार (11 प्रतिशत) ब्राह्मण मतदातओं मजबूत समीकरण है। ऊपर से उनके भाई और भाजपा से तीन बार विधायक रहे प्रेम प्रकाश उर्फ जिप्पी तिवारी भी पार्टी मोह छोड़ कर भाई की मदद में खुल कर मैदान में उतर आये हैं। जिप्पी तिवारी के विभिन्न वर्गों में अपनी पकड़ है, जिसका लाभ अशोक तिवारी को जरूर मिलेगा।

नहीं चल पा रहा हिंदुत्व का कार्ड

सबसे बड़ी बात यह है कि  अशोक तिवारी अपनी जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग में जितने मजबूत होंगे, भाजपा प्रत्याशी की राह उतनी ही कठिन होगी। हालांकि भारती जनता पार्टी के उम्मीवार क्षेत्र में विकास कार्यो के अलावा हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की पूरी शिद्दत से कोशिश कर रहे है। परन्तु इस बार पूरे प्रदेश की भांति यहां भी हिंदुत्व की धार भोथरी देखी जा रही है। जाहिर है अपना पुराना ब्राह्मण आधार कायम रखने के लिए यहां भाजपा को काफी मेहनत करनी प़ड़ेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस पार्टी से कांती पांडय भी मैदान में हैं और वे भी ब्राह्मण मतों के एक भाग पर दावा कर रही हैं। इसके अलावा मित्रसंघ के राजू श्रीवास्तव के भी चुनाव लड़ने से भाजपा के कायस्थ वोटर भी अलग होते जा रहे हैं। यानी यहां भी भाजपा को नुकसान की आशंका है।

मुस्लिम मतदाता उहापोह में पड़े

डुमरियागंज सीट पर मुस्लिम मतदाता विशाल संख्या में है। उनके वोटों की तादाद 1.51 लाख (36.86 प्रतिशत) है। यहां 9 प्रतिशत यानी 36 हजार यादव मतदाताओं के साथ समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी सैयदा खातून सबसे ताकतवर प्रत्याशी मानी जाती हैं। परन्तु सपा की अंदरूनी कलह ने सहां भी इस मजबूत समीकरण को कमजोर कर दिया है। डुमयिगंज में आम चर्चा है कि राम कुमार उर्फ चिनकू यादव को टिकट न मिलने से यादव नाराज है। वह अन्यत्र जाने की बात कर रहा है। दूसरे पूर्व मंत्री मलिक कमाल यूसुफ को सपा का टिकट न मिलने से उनके बेटे इरफान मलिक के चुनाव मैदान में आ गये है। इससे मुस्लिम मतदाताओं में बहुत उहापोह है।

हालांकि पूरे प्रदेश में मुस्लिमों का रुझान सपा पक्ष में है, परन्तु डुमरियागंज की राजनीति को गहराई तक समझने वले मानते हैं कि यहां की स्थिति प्रदेश से जुदा है। पिछले 40 सालों की राजनीति में कमाल साहब ने अपनी जड़े इतनी मजबूत कर लीं हैं कि जब भी सपा ने उन्हें नजरअंदाज किया तो भी व अपनी ताकत का लोहा मनवाने में कामयाब रहे। 2012 के चुनाव में जब अखिलेश यादव ने उनका टिकट काटा तो वे पीस पाटी से लड़ कर चुनाव जीते और अपनी राजनीतिक ताकत को साबित करने में सफल रहे। वे किसी भी पार्टी में अथवा निर्दल लडें, उनके साथ हिंदू मत भी अच्छी तादाद में साथ रहता हे।

जो भाजपा को हराएगा वहीं मुस्लम मत पायेगा

कमाल यूसुफ की यही राजनीतिक ताकत है कि उनक बेटे इरफान मलिक के चुनाव लड़ने के बाद से संशय में फंसा मुसलमान यकायक खामोश होकर चिंतन में डूब गया है। वह इस बात का आंकलन करने में लगा है कि सपा की सैयदा और मीम के इरफान मलिक में जो भी अंत में मजबूत दिखेगा, उसे ही वोट पोल किया जाएगा। क्षेत्र के मुस्लिम बुद्धिजीवी अब्दुल अहद कहते हैं कि डुमरियागंज में इरफान मलिक या सैसदा खातून अथवा सपा  से प्रेम या नफरत की बात नहीं है।यहां उनका एकमात्र लक्ष्य भाजपा को हाराने का है। ऐसे में सैयदा खातून या इरफान मलिक ही नहीं कोई अन्य प्रत्याशी भी जो भाजपा को हराने में सक्षम दिखेगा, मुसलमानों का वोट उसे ही जाएगा।

अगले सप्ताह छंट सकता है धुंधलका

जाहिर है कि भाजपा के परम्परागत ब्राह्मण और अन्य समर्थक वर्ग में अशोक तिवारी, राजू श्रीवास्तव व कांती पांउेय की सेंधमारी  ने जहां भाजपा की बुनियाद कमजोर की है वहीं मुस्लिम मतों में विभाजन के खतरे तथा यादव मतों में उठते विरोध के स्वर ने सपा को भी खतरे की जद में पहुंचा दिया हे। ऐसे में यह चुनाव एक तरह से रहस्य के चादर में लिप्टा हुआ लगता है। मुमकिन है अगले सप्ताह सियासी आसमान से रहस्य की परते हटें तथा धुंधलका कुछ छंटे तो कुछ सटीक अनुमान लगाया जा सके।

 

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