सपाः डुमरियागंज से सैयदा खातून या कमाल यूसुफ में किसकी दावेदारी तगड़ी

January 8, 2022 2:59 PM0 commentsViews: 1992
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कमाल यूसफ मलिक की सारी उम्मीदें शिवपाल यादव और माता प्रसाद पांडेय पर

सैयदा खातून को है अपने 70 हजार मतों पर भरोसा, समर्थकों में दिख रहा उत्साह

नजीर मलिक


सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज में समाजवादी पार्टी से टिकट को लेकर चल रही मारामारी में इतनी गर्द मची हुई है कि तस्वीर का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। एक तरफ आधा दर्जन बार विधायक और मंत्री रह चुके मलिक कमाल यूसुफ जैसे दिग्गज हैं , तो दूसरी तरफ पिता की राजनीतिक विरासत समेटने को आतुर सैयदा खातून है। इसके अलावा डुमरियागंज सीट से दो दो बार चुनाव लड़ चुके राम कुमार उर्फ चिनकू यादव हैं उन्हें सपा में अपने जातीय समीकरण पर पूरी भरोसा है। तीनों के अपने अपने दावे हैं। आइये देखते हैं कि इन दावों की कसौटी पर कौन कितना खरा है, जिसे लेकर सिर्फ तीनों नेता ही नहीं बल्कि उनके समर्थक पर आपस में गदर काट रहे हैं


चिनकू यादव वैकल्पिक उम्मीदवार

सबसे पहले बात राम कुमार उर्फ चिनकू यादव की। चिनकू यादव डुमरियागंज की राजनीति में सपा के एक्सीडेंटल नेता के रूप में सामने आये। सन 2012 में जब तत्कालीन सपा नेता कमाल यूसुफ पीस पार्टी के टिकट पर चुनव लड़े तो पार्टी ने अचानक चिनकू यादव को प्रत्याशी बनाया। कमाल यूसुफ पीस पार्टी से जीतने के बाद सपा में शामिल हो गये, मगर 2017 में टिकट का फैसला करने की कमान मुलायम सिंह के हाथ से निकल कर अखिलेश यादव के हाथ आ गई और चिनकू फिर सपा प्रत्याशी बने मगर हार कर तीसरे नम्बर पर रहे। लगातार दो बार चुनाव हारने पर लोगों ने अखिलेश को यह समझाना शरू किया कि मुस्लिम बाहुल्य इस सीट से किसी गैर मुस्लिम कैंडीडेट का चुनाव जीत पाना मुश्किल है। सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव ने इसे समझा और नई रणनीति पर भी विमर्श होने लगा। ऐसे में चिनकू यादव के पक्ष में एक ही बात जाती है कि यदि पिछले दो चुनावों की तरह अखिलेश यादव ने डुमरियागंज में गैरमुस्लिम को लड़ाने का विचार बनाया तो चिनकू यादव ही एक एकमात्र व अंतिम विकल्प होंगे।

सैयदा समर्थक दिख रहे काफी खुश

दूसरी तरफ मुस्लिम उम्मीदवार लड़ाने की दशा में उनके पास हाल ही में बसपा से सपा में शामिल हुई सैयदा खातून एक मात्र विकल्प हैं, जिन्हें गत चुनावों में 70 हजार मत मिले थे और वे मा़त्र 270 मतों से चुनाव हारीं थीं। हालांकि उसमें दलितों का मत भी शामिल था। फिर भी पार्टी में एक मात्र मुस्लिम नेता होने के कारण उनका टिकट पक्का हो सकता था, मगर इसमें सबसे जबरदस्त पेंच पूर्व में सपा के दिग्गज नेता रहे कामाल यूसुफ मलिक का है। कमाल यूसुफ 2017 में अखिलेश यादव व शिवपाल यादव के बीच चली जंग में शिवपाल यादव के साथ दिखे थे। लिहाजा सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव से उनके रिश्ते अच्छे नहीं हैं। ऐसे में सैयदा खातून को टिकट मिलने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी। मगर हाल में अखिलेश और शिवपाल के बीच रिश्तों में सुधार होने तथा दोनों की पार्टियों में गठबंधन हो जाने से कमाल यूसफ का खेमा बहुत जोश में है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अखिलेश यादव ने सैयदा खातून के सपा में शामिल होने के एवज में टिकट का साफ वादा नहीं किया है। उनका कहना है कि पार्टी सर्वे में आयी रिपोर्ट के आधार पर टिकट कर फैसला किया जाएगा। इस संदर्भ में उनके पति जहीर मलिक का कहना है कि सैयदा की लोकप्रियता, जनाधार काफी है। इसलिए रिपार्ट तो उनके पक्ष में ही जाएगी। जहीर मलिक के मुताबिक यह मान कर उनके लोग क्षेत्र में माहौल बनाने और जनसम्पर्क में जुट गये हैं।
कमाल यूसुफ खेमे के हौसले बुलंद

मगर कमाल युसुफ के खेमे के हौसले भी बेहद बुलंद हैं। सूत्र बताते हैं कि प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव ने उन्हें चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है। गठबंधन से टिकट लिए शिवपाल यादव की सूची में कमाल यूसुफ का नम्बर चौथा है। तीन अन्य उनके परिजनों के हैं। अतः इस दावे को आसानी से खरिज नहीं किया जा सकता। यही नहीं जिले के एक बड़े सपा नेता भी अखिलेश यादव को लगाातार यह सलाह देते आ रहे हैं कि कमाल यूसुफ या उनके परिजन को टिकट देकर आस पास के जिलों में माहौल बनाया जा सकता है। सपा के दिग्गज नेता माता प्रसाद पांडेय का रुझान भी इसी तरफ है। जिसे हलके में नहीं लिया जा सकता।

फिलहाल डुमरियागंज में सपा ने यदि बहुसंख्यक को टिकट दिया तो चिनकू यादव का टिकट पक्का है। परन्तु अल्पसंख्यक को लड़ाने के मसले पर कमाल और सैयदा को लेकर काफी पेंच हैं। दोनों के समर्थक क्षेत्र के चाय पान की दुकानों में इसी चर्चा और गुणा भाग में आकाश पाताल के कुलाबे बांध रहे हैं। इसी के साथ उनके क्षेत्र में अपने नेता के लिए चुनाव प्रचार भी करते जा रहे हैं।

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