वेल डन अल्लाह! आप नहीं होते तो हम भ्रष्टाचार नहीं कर पाते

August 18, 2015 12:41 PM4 commentsViews: 943
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नज़ीर मलिक

madarsa

“मुस्लिम बच्चों में बेहतर तालीम के उद्देश्य से चल रहा एक ‘मदरसा’ भ्रष्टाचार की नई कहानी गढ़ रहा है। यह मदरसा सिर्फ उत्तर-प्रदेश सरकार से लाखों रुपए ऐंठने की नीयत से बनाया गया है। ज़िले के आला अफसर जांच पूरी किए बिना इस मदरसे को लाखों रुपए हर साल जारी करते रहे। मगर फर्ज़ीवाड़े का खुलासा होने पर जब अफसरों से इस मदरसे की जानकारी मांगी गई तो जवाब देने की बजाय सभी अपनी जान बचाने में जुट गए हैं। मामला बर्डपुर ब्लॉक के गांव करीमपुर का है जहां फर्ज़ी मदरसा सिद्दीकिया इस्लामी निस्वा दर्सगाह (मुस्लिम लड़कियों का स्कूल) अभी भी चल रहा है।”

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक यह मदरसा करीमपुर गांव में स्थित है। मगर मौके पर ऐसे किसी मदरसे का ढांचा मौजूद नहीं है। इस कागज़ी मदरसे के नाम पर मदरसा प्रबंधन और सरकारी बाबूओं ने कितने लाख रुपए गबन किए गए हैं, अभी तक इसका सटीक आंकड़ा नहीं मिल पाया है। उत्तर प्रदेश सरकार हर मदरसे को औसतन एक लाख रुपए की प्रति माह मदद करती है यानीकि एक साल में 12 लाख। अगर मान लिया जाए कि मदरसा सिद्दीकिया इस्लामी निस्वा के नाम पर यह फर्ज़ीवाड़ा पांच साल से चल रहा है तो गबन की कुल रकम 60 लाख के आसपास बैठेगी।

इस मदरसे का रिकॉर्ड खंगालने के लिए कपिलवस्तु पोस्ट ने ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी आशुतोष पांडेय से संपर्क किया। मगर कोई भी जानकारी देने की बजाय उन्होंने वही घिसा-पिटा जवाब आगे कर दिया जो अमूमन दूसरे अधिकारी करते हैं। आशुतोष पांडेय ने कहा कि फिलहाल इस मदरसे की जांच चल रही है, इसलिए अभी इसके बारे में कोई कॉमेंट करना ठीक नहीं है।

मगर कपिलवस्तु पोस्ट के सूत्र बताते हैं कि ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ऐसी कोई जांच नहीं करवा रहे है। फर्ज़ी मदरसा प्रबंधन और अल्पसंख्यक कल्याण अपनी पूरी ऊर्जा इस घोटाले से बचने की तरक़ीब तलाशने में लगा रहे हैं। आलम यह है कि विभाग से इस मदरसे की जानकारी हासिल करने के लिए मुकामी ग्रामीणों को आरटीआई डालना पड़ गया है जिसका जवाब अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने अभी तक नहीं दिया।

सिद्धार्थनगर ज़िले में उत्तर प्रदेश सरकार से अनुदान मिलने वाले कुल मदरसों की संख्या 392 है। इन मदरसों में टीचरों की भर्ती, स्कॉलरशिप और पढ़ाई-लिखाई के लिए सरकार हर साल लाखों रुपए का अनुदान देती है। मगर मदरसों के नाम पर आने वाली इस रकम में हेराफेरी अब बेहद सामान्य है। मदरसा प्रबंधन सभी मद में आए रुपयों में कटौती करता है। इसके अलावा टीचरों की नियुक्ति अपने घर के सदस्यों या रिश्तेदारों की करता है। अगर टीचर बाहरी हुए तो नौकरी देने के नाम पर मोटी रकम ऐंठता है।

यह फर्ज़ीवाड़ा उजागर होने के बाद समाजवादी पार्टी के पूर्व ज़िला महासचिव अफ़सर रिज़वी का कहना है कि कागज़ी मदरसे का यह एकमात्र मामला नहीं है। जिला प्रशासन अगर पूरी ईमानदारी ने सभी संचालित मदरसों की तफ़्तीश करवा दे तो कई फर्ज़ी मदरसे सामने आएंगे। फिर घोटाले की रक़म भी लाख से बढ़कर करोड़ों में पहुंच जाएगी। क़ौम की ख़िदमत के नाम पर किए जा रहे इस भ्रष्टाचार को अफसर रिज़वी ने शर्मनाक बताया है।

 

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