1952 का पहला चुनावः जब उम्मीदवारों के अलग अलग बैलेट बाक्स थे, औरतें पति का नाम नहीं लेती थीं

January 24, 2017 12:26 PM0 commentsViews: 641
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नजीर मलिक

पहले चुनाव में कांग्रेस का बना दुर्लभ पोस्टर

पहले चुनाव में कांग्रेस का एक दुर्लभ पोस्टर

सिद्धार्थनगर। देश का पहला आम चुनाव बहुत रोचक और रोमांचक था। भारत में पिछड़ापन इतना था कि लोग चुनाव चिन्हं नहीं पहचान पाते थे, इसलिए हर उम्मीदवारों के अलग रंग के अलग अलग बैलेट बाक्स बनाये गये। मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के रंग वाले बाक्स में बिना मुहत लगाये बैलेट पेपर डाल देता तोभी वह मान्य था। पांच राज्यों के चुनाव हो रहे हैं तो ज्यादातर युवा मतदाता सोचते होंगे की प्रथम आम चुनाव कैसे हुए होंगे तो आइये 1952 के प्रथम चुनाव के बारे में जानकारी लें की नये नये आजाद हुए देश में ये कैसे सम्भव हुआ

पहले आम चुनाव में लाकसभा रिजल्ट यों था

1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा में 364 सीट, सीपीआई को 16 सीट, सोशलिस्ट पार्टी को 12 सीट व भारतीय जनसंघ को 03 सीट मिली थी। तब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ा था।तो आइये विस्तार से जाने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रथम आम चुनाव के बारे में।

सुकुमार सेन थे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त

उस चुनाव में आई सी एस सुकुमार सेन देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे। उन्होंने 1952 व 1957 के आम चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभा के चुनाव भी करवाये। 1957 के चुनाव में सेन ने सरकार के लगभग साढे चार करोड़ रुपए बचाये थे, क्योंकि उन्होने प्रथम चुनाव के लगभग 35 लाख बैलेट बाक्स बचा कर रख लिए थे जो दूसरे चुनाव में काम आये

सेन कितने काबिल अफसर थे इस का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद अफ्रीकी देश सूडान ने अपने प्रथम चुनाव कराने की जिम्मेवारी उन्हें सौंपी इस दौरान के कुछ मुख्य कार्य प्रथम आम चुनाव व विधानसभा चुनावो की खास बातें। पहला आम चुनाव फरवरी 1952 में हुआ था। जिसमें 18000 से उपर प्रत्याशियों ने लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाया था।

पहले इलेक्शन में कुल मतदाता थे 17.6 करोड़

इस चुनाव में कुल 17.6 करोड़ मतदाताओं का पंजीकरण हुआ और 20 लाख बैलेट बौक्स का निर्माण किया गया। 2.24 लाख मतदान केन्द्र बनाये गये और 16500 लोगों को 6 महीने के अनुबंध पर मतदान के लिए नियुक्त किया गया। इसके अलावा 2.8 लाख वालंटियर ने मतदान कराने में सहयोग दिया

1952 में साक्षरता मात्र 16 प्रतिशत थी, इसलिए चुनाव आयोग ने हर एक प्रत्याशी के लिए अलग अलग बैलेट बाक्स का प्रबंध किया था,  जिस पर उस प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह तो था ही, हर बक्से का रंग भी अलग अलग था। मतदाता बक्से का रंग व निशान देख कर वोट डाल सकता था।

28 लाख महिला वोटरों ने नही कराया पंजीकरण

उस चुनाव में सबसे बड़ी दिक्कत महिलाओं के मतदाता बनाने में आई क्यों कि महिलाओं को अपना नाम बताना कबूल नहीं था। वो अपने पति का नाम बताने तक को राजी नहीं थीं। दरअसल उस वक्त अपवादों को छोड़ कर कोई महिला अपने पति का नाम नहीं लेती थीं। समाज में औरत द्धारा पति का नाम लेनासामाजिक अपराध माना जाता था। ज्यादातर महिलाएं चाहती थी कि लिस्ट में उनके पति के स्थान पर उन के बेटे का नाम लिखा जाये। पति का नाम न लेने की रीति के चलते में 28 लाख विवाहित महिला वोटरों ने अपना पंजीयन ही नहीं कराया।

 

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