रेलवे स्टेशन पर आवारा पशुओं का कब्जा, यात्री नारकीय कष्ट भोगने को मजबूर

August 27, 2019 12:02 PM0 commentsViews: 536
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निजाम अंसारी

शोहरतगढ़, सिद्धार्थनगरः शोहरतगढ़ रेलवे स्टेशन परिसर गायों का नया आशियाना  बन गया है। यात्रियों के बीच घूमते जानवर से लोगों में डर रहता है तो दूसरी तरफ स्टेशन परिसर में चारो तरफ गन्दगी फैली रहती है। स्टेशन परिसर में गायों का घूमना लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है।

शोहरतगढ़ रेलवे स्टेशन के सामने इतनी ज्यादा गाय और गंदगी सत्तर के दशक में पहली बार हुआ है।  गायों के इस जमावड़े से स्कूली छात्र, राहगीर, यात्री, किसान, नगरवासी सब परेशान हैं ! स्टेश न की सहन में  आटो रिक्शा या कोई वाहन खड़ा कर पाना मुहाल हो गया है। लेकिन जिम्मेदारों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही, जो की चिंता का विषय है?

स्टेशन परेशान व आसपास के  कई स्थानों पर जानवर गोबर आदि करके गंदगी फैला रहे हैं। शोहरतगढ़ स्टेशन को गायों ने अपना अड्डा बना लिए, जो उनके लिए भी समय समय पर खतरनाक साबित हुआ है। अब तक कई गायें ट्रेन से कटकर मर चुकी हैं। लेकिन प्रशासन चैन की नींद सो रहा है। स्टेशन के जिम्मेरदार अफसरों का भी ध्यान इधर नहीं जाता। वह इस समस्या से निपटने में नाकाम साबित हैं। प्रशासन के साथ साथ वो जिम्मेरदार लोग भी चुप हैं, जो चुनाव के समय गाय का नाम सबसे पहले लेते हैं। जिस गाय को राजनीति में वोट पाने के लिए इस्तेमाल किया गया, वो आज ट्रेनों से कटकर मरने पर मजबूर हैं। आए दिन शोहरतगढ़ में ट्रेन से कटकर गायों की मरने की घटानाएं हो रही हैं, लेकिन इस दिशा में किसी का ध्यान नही जा रहा है।

शहर की सड़कों पर घूमने वाले, रेलवे परिसर के बेसहारा पशु अब आफत बनने लगे है। इनकी संख्या कहीं ज्यादा बढ़ गई है। नेशनल हाईवे तक पर इनका जमावड़ा होने लगा है। कस्बे की शायद ही कोई ऐसी सड़क होगी, जिस पर बेसहारा पशु न दिखाई देते हों। पुलिस पिकेट, गोलघर, भारतमाता चौक, तहसील रोड, सरकारी अस्पताल, धर्मशाला, गड़ाकुल तिराहा, खुनुवा बाईपास, ब्लाक रोड आदि पर इनकी धमाचौकड़ी रहती है। नेशनल हाइवे पर भी इनसे समस्या हो रही है। सड़कों पर इधर-उधर घूमने से वाहन चालकों को परेशानी होती है। ऐसे में किसी के लिए भी संभलकर चलना आसान नहीं रह जाता। इस स्थिति में कई बार हादसे होते-होते बचे है। ग्राम पंचायतों में घूम रहे पशुओं को आश्रय तक पहुंचाने की जिम्मेदारी गो संचालक समिति व ब्लाक की है। वह पुलिस, वनविभाग, पशु चिकित्सा विभाग आदि से सहयोग ले सकते हैं। लेकिन इन्हें गोशाला तक पहुंचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है

 

 

 

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