गोरखपुर सदर सीट पर मुख्यमंत्री योगी को सुभावती शुक्ल की चुनौती कितनी दमदार?

January 23, 2022 1:18 PM0 commentsViews: 1044
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राधामोहन दास अग्रवाल की रहस्यमय चुप्पी के साथ पूर्व मंत्री   शिवप्रताप शुक्ल पर टिकी हैं राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें

 

नजीर मलिक

मुख्यंमंंत्री योगी आदित्यनाथ और श्रीमती सुुुभावती शुुक्ल

गोरखपुर।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर से लड़ना तय हो चुका है। गृहनगर गोरखपुर से चुनाव लड़ने की जानकारी का खुलासा होने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उनके मुकाबले में उन्हीं के करीबी रहे भाजपा नेता सुभावती शुक्ला को उम्मीदवार घोषित कर भाजपा के खिलाफ करारा दांव चल दिया है। ऊपर से भी आर्मी के अध्यक्ष चन्द्रशेर आजाद ने भी योगी के खिलाफ ताल ठोकने का एलान कर लागों को चौंका दिया है। इन दोनों घटनाओं के बाद गोरखपुर सदर सीट को लेकर बहस मुबाहिसा तेज हो चुकी है। अक्सर यह सवाल पूछा जाने लगा है कि क्या गोरखपुर में  योगी जी अपने ही गढ़ में घिर गये हैं। क्या वह विपक्ष के चक्रव्यहु को आसानी से भेद सकेंगे?

आश्वस्त हैं भाजपा समर्थक

गोरक्षपीठ के महंथ के रूप में सवके लिए पूज्यनीय योगी आदित्य नाथ 26 साल की उम्र में वर्ष 1998 में गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से पहला चुनाव जीते थे। तब से लेकर अब तक वे लगातार 6 बार चुनाव जीत चुके हैं। यही नहीं चुनाव दर चुनाव उनकी जीत का अंतर भी बढ़ता रहा है। यही नहीं वर्ष 2002 में उन्होंने गोरखपुर सदर सीट से भाजपा के दिग्गज नेता शिवप्रताप शुक्ल के खिलाफ अपने संगठन हिंदू युवा वाहिनी के बैनर तले डा. राधामोहन अग्रवाल को जिता कर अपनी ताकत दिखाया था। तब से राधामोहन अग्रवाल निरंतर विधायक बनते चले आ रहे हैं। इस दृ्ष्टिकोण से देखा जाये तो गोरखपुर की सीट ही उनके लिए सबसे सुरक्षित मानी जा सकती है। इसी तर्क के आधार पर उनके करीबी इस सीट पर किसी से लड़ाई न होने की बात कह कर उनकी इक तरफा जीत सुनिश्चित बाता रहे हैं, जो किन्हीं अर्थों में सच भी लगती है। भारतीय जनता पार्टी के किसी भी समर्थक से बात की जाए तो वह मुख्यमंत्री की जीत को लेकर आश्वस्त दिखता है।

तस्वीर का दूूसरा पहलू भी हैै

कहते हैं कि तस्वीर का दूसरा पहलू भी होता है। तो दूसरा पहलू यह है कि इसी सरजमीन पर जिले की मानीराम विधानसभा सीट से सन 60 के दशक में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नाराण सिंह उस समय के युवा नेता रामकृष्ण द्धिवेदी से चुनाव हार गये थे। उस समय उन्हें गोरक्षपीठ मठ का पूरा समर्थन प्राप्त था। यही नहीं गोरखपुर- बस्ती मंडल के सबसे कद्दावर नेता और भाजपा में पार्टी का ब्राह्मण चेहरा रहे उपेन्द्र शुक्ल योगी जी के सीएम बनने के बाद उनकी संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद से हार गये थे। यह दोनों घटनाएं यह साबित करती है कि सीएम योगी के लिए लगभग अपराजेय मानी जा रही सदर सीट पर भी इतिहास दोहराया जा सकता है और अपवाद स्वरूप अप्रत्याशित परिणाम कभी भी सामने आ सकता है। भाजपा को यह ध्यान में रखना होगा।

सीएम के हारने की दलीलें

योगी आदित्यनाथ के लिए सदर सीट अपराजेय होने के बावजूद उनकी हार की आशंकाएं जताने वालों की कमी नहीं है। भाजपा विरोधियों का दावा है कि प्रदेश भर ब्राह्मणों में भाजपा को लेकर आकोश है। योगी जी के सीएम बनने के बाद प्रशासन का पहला छापा गोरखपुर में निर्विवाद रूप से सबसे ताकतवर ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी के घर पर ही पड़ा था। दावे के अनुसार विप्र समाज इसे अपमान समझ कर याद रखे हुए है।यही नहीं हरिशंकर तिवारी का पूरा कुनबा और समर्थक समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुका है। आम ख्याल है कि गोरखपुर का ब्राम्हण समाज भाजपा और सीएम योगी से बुरी तरह नाराज है। यही नहीं कभी सीएम योगी के समर्थक रहे और उपपचुनाव में हार जाने वाले स्व. उपेन्द्र शुक्ल का परिवार भी योगी से दुखी है। उनका कहना है कि उपेन्द्र शुक्ल की मौत के बाद सीएम ने फिर कभी उनके परिवार का कुशल क्षेम तक नहीं पूछा। यही कारण है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उपेन्द्र शुक्ला की पत्नी श्रीमती सुभावती शुक्ल को मैदान में उतारा है। सपा का मानना है कि सुभावती को सहानुभूति का लाभ जरूर मिलेगा।

विधायक राधामोहन दास फैक्टर

इसके अलावा सीएम योगी के सदर सीट से चुनाव लड़ने का मतलब है कि इस सीट के भाजा विधायक राधामोहन अग्रवाल को टिकट नहीं मिलेगा। सीएम और राधामोन के बीच हाल के दिनों में रिश्ते ठीक नहीं रह गये हैं। हालांकि विधायक राधामोहन अग्रवाल ने अभी तक खामोशी अख्तियार कर रखी है, मगर कहीं वह विरोध में उतरे या खामोश ही रहे तो वैश्य वर्ग से भी कुछ वोटों का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा भाजपा की ब्राह्मण कमेटी के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री  शिव प्रताप शुक्ल पर अपने समाज को लामबंद करने की जिम्मेदारी है, परन्तु उनके और सीएम योगी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है जिसे सभी जानते हैं। सीएम योगी ने बगावत कर 2002 में राधामोहन दास को लड़ा कर शिव प्रताप शुक्ल को हराया था। इसकी चर्चा आज भी हो रही है।

क्या कहते हैं विश्लेषक

बहरहाल राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इतने अंतरविरोधों के बावजूद गोरखपुर सदर की सीट पर योगी को हरा पाना बेहद कठिन है। मगर लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी जिले में मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिभुवन नारायण सिंह हार चुके हैं। इस बहस में जहां विरोधी कह रहे हैं कि एक बार पुनः त्रिभुवन नारायण सिंह का इतिहास दोहराये जाने के आसार हैं तो योगी समर्थक साफ कहते हैं कि हम तो 10 मार्च को केवल यह देखेंगे कि विरोधियों की जमानत बची या नहीं?

 

 

 

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