इटवा में शिक्षा मंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर, चौतरफा लड़ाई में घिरे

February 15, 2022 1:39 PM0 commentsViews: 2115
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इटवा विधानसभा सीट पर एक-एक वोटों के लिए जूझना पड़ सकता है

भाजपा को, सभी राजनीतक दलों के तरकश के तीर भाजपा की ओर

नजीर मलिक


सिद्धार्थनगर। पूर्वांचल की हाट सीट मानी जाने वाली इटवा विधानसभा सीट पर प्रदेश के बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश चन्द्र द्धिवेदी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वह सपा के दिग्गज नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पंडेय, गत चुनावों में दूसरे नम्बर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी अरशद खुर्शीद व बसपा के ताकतवर प्रत्याशी हरिशंकर सिंह के बीच अभिमन्यु की तरह घिरे हुए हैं। क्षेत्र मे आम ख्याल है कि यह चुनावी युद्ध शिक्षामंत्री के लिए वाटरलू का मैदान साबित हो सकता है?

इटवा विधानसभा में इस बार 3.50 लाख मतदाता हैं। जिसमें 1.28 लाख मुस्लिम और लगभग 56 हजार दलित मतदाताओं को छोड़ कर शेष मतों के बीच में भाजपा प्रत्याशी व मंत्री सतीश द्विवेदी को अपनी जीत की राह तलाशनी है। इन्हीं मतों का भारी अंश प्राप्त कर गत चुनाव में हिंदुत्व की लहर पर सवार होकर सतीश द्विवेदी प्रदेश के सदन में पहुंचे थे। मगर इन पांच सालों में राजनीति में भरी परिवर्तन देखा जा रहा है। जानकार बताते हैं कि इस बार भाजपा के हिंदुत्व की लहर जोर पकड़ नहीं पा रही है। स्वामी प्रसाद मोर्य, दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर के सपा खेमे में आ जाने के कारण अति पिछड़ों में भाजपा का जनाधर घटता नजर आ रहा है। जिसका असर भाजपा पर निश्चित रूप से पड़ेगा।

नई ताकत बन कर उभरे माता प्रसाद पाण्डेय

इटवा क्षेत्र निवासी पंकज त्रिपाठी कहते हैं कि महंगाई चरम पर है। बेरोजगारी बढ़ी ज रही है, खुद शिक्षा मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं। दूसरी तरफ सपा इस बार नई ताकत के रूप में उभरी है। लोग इस तरफ आकर्षित हैं। बेसिक शिक्षा मंत्री के मुकाबिल सपा के दिग्गज नेता माता प्रसाद पांडेय हैं। इसलिए भाजपा उम्मीवार ब्राह्मण मतों पर भी एकधिकार का दावा नहीं कर सकते। पंकज त्रिपाठी की दलीलों पर यदि गौर किया तो यह सतीश द्विवेदी के लिए कठिन हालात का इशारा करते हैं। ऐसे में जीत के लिए भाजपा को एड़ी चोटी लगानी पड़ेगी। एन चुनाव के दौरान भाजपा के अनेक मजबूत कार्यकताओं द्वारा पार्टी छोड़ जाना हालात को और भी चिंताजनक बनाता है। सपा के जिला महामंत्री कमरुज्जमा कहते हैं कि इस बार माता प्रसाद पाण्डेय जी भाजपा को रिर्काड मतों से हराएंगे।

अरशद खुर्शीद साथ भजपा समर्थक कुलीन वर्ग भी

इटवा मे माता प्रसाद पाण्डेय के अलावा भी दो मजबूत प्रत्याशी सतीश द्विवेदी की घेराबंदी में लगे हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी अरशद खुर्शीद की चुनावी रणनीति का लोहा सभी मानते हैं। गत चुनाव मे पहली बार मैदान में उतर कर उन्होंने सतीश द्विवेदी को कड़ी टक्कर दी थी और दूसरे नम्बर पर रहे थें इन पांच सालों में अरशद ने क्षेत्र में अपनी पकड़ और भी मजबूत की है। उनके साथ भाजपा समर्थक वर्ग का एक कुलीन खेमा भी काम कर रहा है। वह गत चुनावों में भाजपा के सतीश द्विवेदी से मामूली मतों से हारे थे। इस बार वह अपनी पराजय का बदला लेने की हरचंद कोशिश कर रहे हैं। अरश्द खुर्सीद कहते हैं कि इन पांच सालों में गरीबों किसानों और बेरोजगारों के साथ भाजपा ने हर कदम पर छल किया है।इसलिए इस बार उनकी पराजय सुनिश्चित है।

भाजपा के सबसे बड़ खतरा हरिशंकर सिंह

इसके अलावा भाजपा उम्मीदवार के लिए सबसे बड़ा खतरा बसपा उम्मीदवार हरिशंकर सिंह साबित हो रहे हैं। हरशंकर सिंह भाजपा के नेता थे। वे एक बार इटवा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। अपनी निरंतर उपेक्षा से तंग आकर इस चुनाव में वह बहुजन समाज पार्टी के शामिल होकर इटवा से उम्मीदवार भी बन गये। हरिशंकर सिंह का शुमार जिले में अच्छी छवि के नेताओं में होता है। उनके बसपा में आने पर भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग उनके साथ हो गया। बसपा के खांटी कार्यकर्ता भी उनके साथ हैं। हरिशंकर सिंह की सबसे बड़ी खूबी अति पिछड़ा वर्ग में उनकी खासी पकड़ है। उनके चुनाव मैदान में होने से क्षेत्र के लगभग सभी प्रभावशाली राजपूत भी भाजपा का समर्थन छोड़ कर हरिशंकर सिंह के साथ खड़े गये हैं। जो गांवों के मतदाताओं को बसपा के पक्ष में मोड़ने की क्षमता रखते हैं। यह सारे हालात भाजपा के खिलाफ ही जाते हैं।

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