क्रांतिकारी जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ब्रह्मलीन

September 12, 2022 7:28 AM0 commentsViews: 157
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काशी ने बनाया था क्रांतिकारी साधू को शंकराचार्य

अजीत सिंह

सिद्धार्थनगर। ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठ तथा ज्योतिर्मठ बद्रीधाम के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का रविवार को मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर धाम में निधन हो गया। उन्होने झोतेश्वर धाम परिसर में स्थित अपने आश्रम में अपरान्ह अंतिम सांस ली। वे अपने जीवन के 99 साल पूरे कर चुके थे। अंतिम समय में शंकराचार्य के अनुयायी और शिष्य उनके समीप थे।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में हुआ था। बनारस में उन्होंने, स्वामी करपात्री से, वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए।

उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बने और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।

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