डुमरियागंज संसदीय सीट का इतिहासः कौन कब चुना गया सांसद? जानिए पूरी दास्तान

April 6, 2019 4:33 PM0 commentsViews: 5309
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नजीर मलिक

“यूपी के द्धिथनगर की डुमरियागंज संसदीस सीट पर  आजादी के बाद से अब तक 16 बार हुए चुनावों में  7 बार बाजी कांग्रेस के हाथ लगी है। जबकि 6 बार जीत भाजपा ख्रेमें में गई है। इसके अलावा यहां से दो बार समाजवादी व एक बार बसपाई भी जीत का स्वाद चख् चुके हैं। इस बार यह देखना दिलच़स्प होगा कि बाजी किसके हाथ लगती है।इ हालांकि राम मंदिर आंदोलन के अलावा अलन्स अवसरों पर सीधी लड़ाई में अक्सर भाजपा के खाते में हार ही आई है।”

कृपाशंकर थे डुमरियागंज के प्रथम सांसद

लोकसभा का पीला आमचुनाव 1952 में हुआ था तब कृपाशंकर यहां से प्रथम कांग्रेसी सांसद बने थे। इसके बाद 57में कांग्रेस से ही राम शंकर व ६२ में कांग्रेस के पुनः राम शंकर विजेता बने। यह दोनों ही नेता स्वाधीनता आंदोलन की उपज थे,हालांकि वह क्षेत्रीय नहीं थे, मगर तब आजादी का इतिहास सामने था। तब कांग्रेस विरोध का कोई अर्थ नहीं था।

आखिर जनसंघ/ भाजपा ने खाता खोल ही लिया

आजादी के बाद के तीन चुनावों में कांग्रेस के समक्ष् केवल भाजपा यानी तत्कालीन जनसंघ केवल केवल सांकेतिक रूप से चुनाव लडी। वह तीनों जीत तो नहीं पायी, लेकिन अपनी शक्ति बढाती रही। आखिर 1967 में हालात बदले। जनसंघ ने सहारनपुर जनपद के निवासी और लंदन में वकालत कर रहे “बार एट ला” नारायण स्वरूप शर्मा को टिकट दिया और वे आसानी से चुनाव जीत गये। हालांकि उनके मुकाबले केडी मालवीय जैसे धाकड़ कांग्रेसी उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें गैर कांग्रेसी वोटों मसलन समाजवादियों की एक जुटता के कारण हारना पड़ा। लेकिन सरकार कांग्रेस की ही बनी।

1971  में के.डी. मालवीय की वापसी।

67 में नारायण स्वरूप जीत के बाद कभी क्षे़त्र में नहीं आये। इससे जनता में नाराजी थी। उनका मुकाबला एक बार फिर केडी मालवीय से था। कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने कई विकास कार्य कराये, ऊपर से पाकिस्तान से युद्ध और बांगला देश के निर्माण के बाद देश में कांग्रेस और इंदिरा गांधी की लोकप्रियता का डंका बज रहा था। फलतः नारयण स्वरूप शर्मा की हार हुई और मालबीय भारी वोटों से जीते, लेकिन 1975 में देश में लगे आपातकाल के कारण भारत में इंदिरा विरोधी लहर थी। इस चुनाव में स्वय इंदिरा गांधी व उनके पुत्र संजय गांधी हार गये थे। लिहाजा मालवीय की हार पर ज्यादा ताज्जुब नहीं हुआ। इस चुनाव में उन्हें जनता पार्टी के माधव प्रसाद त्रिपाठी ने हराया, हालांकि वे जनसंघ्र घटक के थे। पहली बार कोई स्थानीय राजनीतिज्ञ यहां से सांसद बना।

1980 में स्व. अब्बासी की जीत से फिर लौटी कांग्रेस

जनता पार्टी ढाई सालों में ही आपस में लड़ कर तहस नहीं हो गई। 1980 में हुए संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने डुमरियागंज के विधायक रहे पूर्व मंत्री काजी जलील अब्बासी पर दांव लगाया। काजी साहब ने  भाजपा प्रदेश अध्यक्ष माधव प्रसाद त्रिपाठी को बडें अंतर से चुना हराया। फिर 1985 के चुनाव में भी स्व. काजी जलील अब्बासी ने  भारी जीत हासिल की।  राजनीतिक क्षेत्रों में स्व. अब्बासी का नाम आज भी बडे सम्मान के साथ लिया जाता है। वे स्वाधीनता संग्रम सेनानी और लेखक भी थे।

89  में मिली समाजवाद को पहली जीत

1989  में राजीवगांधी प्रधानमंत्री थे। वह बोर्स प्रकरण में भ्रष्टाचार के आरोपों से धिरे हुए थे।  इस दौरान भाजपा और समाजवादियों ने  आपस में गठजोड़ कर मोर्च बना लिया था। इस चुनाव में पहली बार खांटी समाजवादी बृजभूषण तिवारी को टिकट मिला और वह कांग्रेस विरोधी लहर में आसानी से जीत गये।  इसी के साथ स्व. अब्बासी के राजनीतिक कैरियर का अंत हो गया। इसी के साथ देश में जनता दल की सरकार बनी। यह देश की दूसरी गैर कांग्रसी सरकार थी।

राम मंदिर आंदोलन काल में रामपाल सिंह  ने लगाई  हैट्रिक

1989  राम मंदिर का शैशव काल था। चुनाव बात समाजवादियों और भाजपा में मतभेद हुआ, आडवानी का लालू यादव द्धारा रथ या。ा रोकने पर विवाद हुआ हुआ। जनता दल की स

सरकार गिर गई।  1991 में हुए आम चुनाव में राम मंदिर लहर के चलते एक गैर राजनीतिक और पेशे से इंजीनिसर राम पाल सिंह चुनाव जीत गये।  फिर वे 1998 और 1999 के मध्यावधि चुनावों में उन्होंने दो लगातार जीत हासिल कर हैट्रिक बनाया। यह भाजपा का स्वर्ण काल माना जाता हैं। रामपाल सिंह अच्छे नेता माने जाते थे। बीच में १९९६ के चुनाव में सपा के बृजभूषण तिवारी को जीत मिली।

 

पांच साल बाद फिॅर कांग्रेस लौटी, बसपा ने भी खाता खोला

2004 के चुनाव में कांग्रेस ने बस्ती और कांग्रेस के बडे़ नेता जगदम्बिका पाल को चुनाव लड़ाया।  पाल की  सियासी कद काठी बड़ी थी। लेकिन जिले के एक अन्य बडें कांग्रेसी  मुहम्मद मुकीम ने कांग्रेस का और चुनाव जीत गये, मगर 2009 के चुनाव में कांग्रेस  उम्मीदवार की हैसियत से जगदम्बिका पाल ने मुकीम को पटखनी दे दी।

2014 क चुनाव में हालात को भांप पाल ने भाजपा ज्वाइन कर ली और सांसद बन गये। अब 2019 का चुनाव सामने है ।  मगर सपा बसपा और रालोद गठबंधन ने भाजपा की नींद उड़ा रखी है।  इस बार जगदम्बिका पाल के समने गठबंधन के आफताब आलम बसपा प्रत्याशी के रूप में भाजपा के सामने हैं।  टक्कर कड़ी है। देखिए ऊंट किस करवट बैठता है?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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