महोत्सव जरूर मनाइये मगर अस्थि कलश भी लाइये जनाबǃ कपिलवस्तु महोत्सव कल से
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। इस बार जिले का सबसे बड़ा सांस्कृतिक मेला कपिलबस्तु महोत्सव सात दिनसें का होगा। महोत्सव इसीलिए कल से ही शुरू हो जायेगा। पहले यह मेला हर वर्ष जिले के सृजन दिवस 29 सिम्बर से तीन दिन के लिए होता था। इसे 26 सालों से मनाया जा रहा है। मगर हैरत है कि जिस तथागत के नाम पर यह महोत्सव हर साल होता है, उन्हीं का अस्थि कलश यहां लाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा है। जबकि उस कलश के आने से यहां पर्यटन की जड़ें काफी मजबूत हो जातीं, जिसका सीधा लाभ यहां की जनता को मिलता।
सिद्धार्थनगर जिले ने पर्यटकीय विकास की जरूरी शर्ते पूरी कर ली हैं। कपिलवतु को देश के तमाम हिस्सें से जोड़ने लिए ब्राडगेज लाइन का रेल नेटवर्क तैयार हो चुका है। कपिलवस्तु को सड़क मार्ग से राजधानी व तमाम बड़े शहरों को जोड़ने के लिए नेशनल हाइवे तैयार होने के कगार पर है।
बस जरूरत है गौतम बुद्ध के अस्थि कलश को कपिलवस्तु में स्थापित करने की। पहले सरकार की दलील थी कि इसके लिए कपिलवस्तु में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। अब तो वहां संग्रहालय भी बन चुका है। लेकिन केन्द्र सरकार इस दिशा में उदासीन है। लोगों का कहना है कि मोदी साहब हमें कुछ ने देकर सिर्फ अस्थि कलश दे दें तो हमारा विकास अपने आप हो जायेगा।
बताते चलें कि अस्थि कलश को पूरी दुनियां के बौद्ध मतावलंबी बेहद आदर देते हैं। उसके दर्शन के लिए वह दुनियां के कोने कोने से आते हैं। जब कलश यहां होगा, तो जाहिर है दुनियां के कोने कोने से लोग सिद्धार्थनगर आयेंगे। लेकिन सवाल यही है कलश आयेगा कब? कलश यहीं का है। फिर उसे दिल्ली में रखने का क्या अर्थ है।
कलश लाने का प्रयास. जगदम्बिका पाल
इस बारे में क्षेत्रीय सांसद जगदम्बिका पाल का कहना है कि पिछले पखवारे उन्होंने केन्द्रीय पर्यटन मंत्री को कपिलवस्तु की भूमि पर ले जाकर हालात से रूबरू करा दिया है। वह कलश को लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। उम्मीद है वह जल्द कामयाब होंगे। याद रहे कि अस्थि कलश खुदाई के दौरान कपिलवतु से ही मिला था।
विकास में अस्थि कलश का रोल
दरअसल सिद्धार्थनगर के विकास में अस्थि कलश का रोल बहुत ज्यादा है। अभी कपिलवस्तु के दर्शन के लिए साल में पांच हजार से भी कम विदेशी आते हैं। कलश के यहां आ जाने पर यह तादाद पांच लाख से अधिक हो जायगी। इससे होटल, जलपानगृह, टेराकोटा, दस्तकारी, कशीदाकारी आदि से ताल्लुक रखने वाले व्यापार को बहुत बल मिलेगा। इससे जिले का व्यवसाय प्रति साल 500 करोड़ बढ़ सकता है।
क्या है अस्थि कलश?
तथागत गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद उनका अस्थियों को आठ हिस्सों में बांटा गया था। उसका एक हिस्सा उनके राजमहल कपिलवस्तु में भी आया था। 70 के दशक में खुदाई के बाद मिले कलश को पहले कलकत्ता, बाद में दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रख दिया गया। तब से कलश वहीं पर है।
कपिलवस्तु पोस्ट ने पहली बार दिया अस्थि कलश का चि़त्र
तथागत का अस्थि कलश किस हालत में हैंए कपिलवस्तु पोस्ट ने इसकी खोज की तो पहली बार उसका चित्र सामने आया। दमकता कलश हर बौद्ध विचार समर्थक को पहली नजर में आकषित करता है। अगर यहां आ जाये तो बौद्ध मतावलंबी अपने पवित्र अस्थि कलश को देखने सिद्धार्थनगर में उसके दर्शन के लिए जम कर इसमें संदेह नहीं।