… तो क्या जीवन की सबसे कठिन सियासी लडाई लड़ रहे सांसद जगदम्बिका पाल?

April 29, 2019 3:23 PM0 commentsViews: 1456
Share news

नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज के सांसद और भाजपा के दिग्गज जगदम्बिका पाल अपने जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं। कागजों पर उनकर आंकड़ा कमजोर दिख रहा है। लेकिन किसी जाबांज सेनापति की भांति वे अपने वर्करों में लगातार उत्साह फूंक रहे हैं। पाल के राजनीतिक कौशल से जो लोग परिचित हैं, उन्हें यह भली भांति पता है कि वे हारी हुई बाजी को जीत लेने में माहिर हैं। इसलिए लोग प्रतीक्षा कर रहे है कि चुनाव के आखिरी हफ्ते में वे राजनीति की बिसात पर अपने मोहरे कैसे सजाते हैं?

बताया जाता है कि इस चुनाव में उन्हें कई भितरघातों का सामना करना पड़ रहा है, पार्टी के भीतर उनके कई विरोधी सक्रिय हैं। सरकार का सहयोगी “अपना दल” भी उनके पक्ष में नहीं दिख रहा। जिले के अपना दल के इकलौते विधायक ने तो उनकी खुली बगावत का एलान कर रखा है। लेकिन जगदम्बिका पाल के लिए एक अच्छी खबर यह है कि प्रदेश के आबकारी मंत्री और बांसी के विधायक जयप्रताप सिंह उनके साथ है।

गत चुनाव में जयप्रताप की पत्नी थीं कांग्रेस प्रत्याशी

बता दें कि गत चुनाव में उन्होंने भाजपा में रहकर भी अपनी पत्नी को कांग्रेस से लडाया था, जिन्हें लगभग 88 हजार वोट मिले थे। समझा जाता है कि लगभग 40 हजार वोट भाजपा के थे। इस बार जय प्रताप सिंह पाल के साथ पूरी तरह से हैं। इसलिए सांद पाल के लिए यह सुकून वाली बात है। भाजपा अब उम्मीद कर सकती है कि गत चुनाव में मंत्री पत्नी को मिले अधिकांश वोट  इस बार पाल के खाते में जुडेंगे।

 कागजों पर पाल का आंकड़ा कमजोर

जहां तक आंकड़ों की बात की जाये तो भाजपा प्रत्याशी पाल कागजों पर कमजोर दिखते हैं।  गत चुनाव में सांसद पाल को 2.98 लाख मत मिले थे और वह विजयी हुए थे। उनके निकटतम प्रतिद्धंदी बसपा के मु. मुकीम 1.95 लाख वोट पाकर एक लाख तीन हजार मतों से चुनाव हारे थे। वहीं तीसरे नम्बर पर सपा के माता प्रसाद थे, जिन्हें तकरीबन 1.75 लाख वोट मिले थे। अब सपा और बसपा एक साथ है। नतीजे में दोनों का संयुक्त वोट मिल कर पाल साहब के मतों से 72 अधिक हो जाता है।

इस बार घट गया है पीस पार्टी का प्रभाव

गत चुनाव के आंकडे के आधार पर सांसद पाल कागजों पर 72 हजार से पीछे दिखते है, लेकिन इस बार पीस पार्टी से भी उन्हें फायदा मिलता नहीं दिख रहा। गत चुनाव में पीस पार्टी 99 हजार वोट पाकर चौथे नम्बर में रही थी।  मुसलमानों के इसी वोट की वजह से जगदम्बिका पाल की जीत आसान हुई थी। लेकिन गत चुनाव में पीस पार्टी के अध्यक्ष डा. अयूब खुद चुनाव लड़े थे। इस बार पीस पार्टी का चुनाव में पुराना जलवा नहीं दिखता। इसलिए पीस पार्टी का वोट जितना घटेगा, गठबंधन के वोटों में उतना ही इजाफा होगा। इसलिए कागजी आंकडे भाजपा के प्रतिकूल दिख रहे हैं।

पाल का राजनैतिक कौशल भी कम नहीं

कागजी आंकड़ों में पाल के कमजोर दिखने का मतलब यह कतई नहीं कि कोई उपके चुनाव हारने की भविष्यवाणी कर सके। उनका पांच दशक का राजनीतिक जीवन अनुभवों से भरा है। भाजपा में रहने के बावजूद मुसलमानों से उनके रिश्ते बने हुए हैं। पाल साहब अपने मुस्लिम मित्रों का सहारा ले रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने चुनाव को मोदी बनाम विपक्ष बनाया हुआ है। हालांकि उन्होंने विकास को वरीयता दी है, लेकिन उन्होंने बड़ी होशियारी से चुनावी मुद्दा मोदी बनाम पिक्ष बना रखा है, जिसका असर भी अच्छा पड़ रहा है।

जानकार बताते हैं कि उनके तरकस में अभी कई तीर हैं जो चुनाव के आखिरी सप्ताह में चलेंगे। फिलहाल डुमरियागंज का चुनावी परिद्श्य अभी साफ नहीं है, बस पिछले आंकड़ों के मद्देनजर यही कहा जा सकता है कि सांसद जगदम्बिका पाल अपने जीवन की कठिन लड़ाई में फसें हैं, मगर असली योद्धा वहीं है कठिन व्यूह को भेद कर विजय पताका फहराता है।

 

Leave a Reply