खत्म हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव, परिणाम की औपचारिक घोषणा ही बाकी?

May 21, 2021 11:58 AM0 commentsViews: 2772
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जिला पंचायत सदस्यों को मैनेज करने में बहुत आगे निकल गई भाजपा, विपक्षी या सपाई दावेदारों के मैनेज गुरू रेस से हुए बाहर

नजीर मलिक

 

सिद्धार्थनगर।  जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव होने की अभी घोषणा तक नहीं हुई है। लेकिन खबर की हेडलाइन जरूर चौंकाने वाली है कि जो चुनाव हुए ही नहीं वह खत्म कैसे हो सकते हैं? लेकिन सिद्धार्थनगर जिले में कुछ ऐसा ही लग रहा है। सत्ता विपक्ष की तैयारियां और उनके चुनावी मैनेजरों की सक्रियता निक्रिष्यता के आधार पर आंकलन कर कहा जा सकता है कि चुनाव जब भी शुरू हों, लेकिन खत्म तो आज ही हो चुके हैं। बस केवल उसके लिए ईवीएम से बटन दबवा कर चुनाव परिणाम की अधिकृत घोषणा ही शेष रह गई है।

संयुक्त विपक्ष का कहीं पता नहीं

बता दें कि गत माह सम्पन्न हुए जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में जिले में भाजपा बुरी तरह नाकम रही। उसके द्धारा घोषित समर्थित उम्मीदवारों में कुल दस ही जीत पाये। जबकि समाजवादी पार्टी समर्थित कम से कम १५ सदस्यों की जीत हुई। इसके अलावा कांग्रेय, बसपा के जीते सदस्यों को मिला लिया जाये तो संयुक्त विपक्ष आराम से जीत हासिल हो सकती थी। इसमें भीम आर्मी के बैनर तले जीते एक उम्मीदवार को भी जोडा जा सकता है। विपक्ष की जीत के इतने आसान समीकरण के बावजूद संयुक्त विपक्ष  की तरफ से कोई उम्मीदवार तय नहीं हुआ।

लोगों की माने तो जिले में विपक्षी दल कभी भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष के रूप में दिखे भी नहीं। ऊपर से सरकार का खौफ भी है। उसका मानना है कि यदि भाजपा जीतेगी तो वे निशाने पर रहेंगे ऐसे में चुपचाप रहना ही ठीक है। विपक्ष के नाम पर यहां सपा के अलावा कांग्रेस और बसपा है। मगर बसपा को कोई कद्दावर चेहरा जिले में है ही नहीं, लोग बस चुनावों के समय ही सहां दिखते हैं। रही कांग्रेस की बात तो उससे अधिक निष्क्रिय दल यहां कोई नहीं दिखाई देता है।

सपा ही है वास्तविक विपक्ष

ऐसी दशा मे समाजवादी ही भाजपा के मुकाबले सबसे मजबूत दिखती है। वह अपने 15 सदस्यों के बल पर चाहे तो भाजपा के मुकाबले कमर कस सकती है। क्यों कि अध्यक्ष पद पर जीत के लिए उसे मात्र आठ सदस्यों की जरूरत है। सपा को केवल उन्हीं सदस्यों को मैनेज करना है। हमारे क्षेत्र में मैनेज का अर्थ साम दाम अर्थ अर्थात किसी तरह से अपना काम निकालने को कहा जाता है। साम दंड भेद तो संभव नहीं लेकिन इन्हें दाम अर्थात अर्थ से मैनेज किया जा सकता है। सपा से जीते इन पन्द्रह सदस्यों के अलावा करीब आधा दर्जन मुस्लिम सदस्य निर्दल अथवा अन्य किसी दल दल के हैं जो भाजपा के मुकाबले सपा के पक्ष में आसानी से मैनेज हो सकते हैं। लेकिन जानकारों की माने तो इन मुस्लिम सदस्यों को भी मैनेज करने का सपा की तरफ से कोई प्रयास अब तक नही किया जा रहा।

जिले में सपा की पहिचान एक लड़ाकू पार्टी की है। लेकिन लगता है कि 2017 में डमरियागंज, नौगढ़, भनवापुर के ब्लाक प्रमुखों को हटाया गया तथा जिला पंचायत अध्यक्ष को जिस प्रकार हटाने की कोशिशें की गईं उससे इस बार सपा का मनाबल टूटा हुआ लगता है। गत वर्ष का अंजाम देख कर इस बार सपा दावेदार सोच रहे हैं कि चुनाव में लंबा खर्च का वह जीत भी जाये, मगर गत वर्षों की तरह कुछ कर न पाएं तो फायदा क्या है।

सपा में कोई मैनेज गुरू नहीं

सपा के जीते एक सदस्य का कहना है कि सपा में इस वक्त कोई मैनेज गुरु नहीं है। उस सदस्य के मुताबिक भाजपा ने तमाम सदस्यों को मैनेज करना शुरु कर दिया है। मगर सपा के चुनाव लड़ने के एक प्रबल दावेदार का कहना है कि वह चुनाव जीतने पर अपने सदस्यों के लिए बहुत कुछ करेंगे। एक निर्दल मुस्लिम सदस्य का कहना है कि जो आज मैनेज नहीं करेगा वह जीतने के बाद क्या करेंगा। क्या गारंटी है कि वह जत ही जए। सही नहीं वह जीत भी जाए तो हम जैसों के लिए कुछ विशेष कर पाये इसका कोई भरोसा नहीं। कई अन्य सदस्य भी इसी प्रकार की दलीलें देते हैं।

भाजपा आत्म विश्वास से भरपूर

जहां तक भाजपा का सवाल है वह जीत के प्रतिपूरी तरह से आश्वस्त है। उसने अभी से इस चुना पर काम करना भी शुरू कर दिया है। भाजपा के एक सूत्र का कहना है कि उसने जीत के लिए जरूरी सदस्यों को पहले ही मैनेज कर लिया है। इसलिए चुनाव चाहे जब हों जीतने का काम उसने पूरा कर लिया है। बता दें कि भाजपा मैनेजरों की सूची में कई निर्दल, मुस्लिम तथा सपा के जिला पंचायत सदस्य भी शामिल हैं।

सूत्रों के अनुसार इन्हें भाजपा के एक दावेदार की ओर से मैनेज किया गया है। जिनकों पार्टी का टिकट मिलना तय है। परन्तु यदि किन्हीं परिस्थितियों में किसी दूसरे दावेदार को टिकट मिला तो भी भाजपा एक दूसरे से तालमेल और मैनेज करा कर मामले को आपस में सुलझा लेगी। उस कार्यकर्ता ने कहा कि पार्ट जनों का पहला काम था जीत के लिए सदस्यों को मैनेज करना, वह काम उसने कर लिया है। यानी चुनावी युद्ध में निश्चित विजय की नीति तैयार कर ली गई है। आगे चुनाव का औपचारिक एलान होगा। दो तीन घंटे में वोट पड़ जाएगा और परिणाम की अधिकृत घोषणा हो जाएगी।

 

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