प्रधान से मंत्री पद तक पहुंचे मलिक कमाल का सियासत में आना कमाल का संयोग था

September 6, 2022 3:20 PM0 commentsViews: 716
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नजीर मलिक

डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज तहसील मुख्यालय से पांच किमी दूर कादिराबाद गांव के निवासी मलिक कमाल यूसुफ का राजनीति के मैदान में आना महज एक संयोग था, जिसने  नाम के अनुरूप वाकई कमाल कर दिया। एक बूढ़ी औरत के लिए न वह एक अफसर से भिड़ते न ही वे कभी राजनति में ओते। लकिन उनका सियासी मैदान में उतरना भी डुमरियागंज के लिए शुभ साबित हुआ।

गांव के एक प्रतिष्ठित घराने में जन्मे कमाल साहब को राजनीति का न तो शौक था न ही जरूरत। घर में दो दो चाचा और बाबा आनरेरी मजिस्ट्रेट थे। सैकड़ों एकड़ की खेती थी। चाचा मलिक हामिद हुसैन जिले के नामी वकील थे। कुल मिलाकर कमाल साहब का काम पढ़ना और घूमना ही था। इसी बीच 1971 में वे अपने नाना के स्थान पर मात्र 23 साल की उम्र में ग्राम प्रधान भी निर्वचित हो चुके थे। लिहाजा पढाई भी बंद करनी पड़ी। डुमरियागंज ब्लाक के इर्द गिर्द बैठना उनका प्रमुख शगल था।

1972 का साल था, एक दिन मलिक कमाल ब्लाक के सामने बैठे थे तभी किसी ने उनसे 70 साल की एक बूढ़ी औरत से मिलवाया।उस गरीब औरत का एक जायज काम उस वक्त तहसीलदार नहीं कर रहे थे। साथियों द्वारा उस बूढ़ी औरत की मदद के लिए वे तहसीलदार के पास गये। बात बात में विवाद हो गया। उस समय के प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि तहसीलदार का अक्खड़पन देख कमाल साहब ने उन्हें पीट दिया। इस घटना पर बहुत हंगामा हुआ। उस समय के विधायक स्व. जलील अब्बासी साहब कमाल मलिक के परिवार के करीबी और मंत्री थे।

मामला उनके संज्ञान में आया। मलिक कमाल को उम्मीद थी कि विधायक/मंत्री जी उनका साथ देंगे, लेकिन अब्बासी साहब ने उनको डांट पिलाई और इसे सरकारी अफसर के साथ बद सलूकी माना। बस उनसे दो दो हाथ करने की ठान लिया। सन 1974 के विधनसभा चुनाव में कमाल साहब ने संगठन कांग्रेस से टिकट ले लिया। यह कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनी थी। इसलिए टिकट भी आसानी से मिल गया। हालांकि पूरा परिवार जलील अब्बासी साहब के साथ अच्छे रिश्तों की दुहाई देकर कमाल मलिक के चुनाव लड़ने के बेहद खिलाफ था।

उस चुनाव में पिता मलिक मोहम्मद यूसफ को छोड कर उनका पूरा परिवार उनके बजाए जलील अब्बासी साहब के साथ था। लेकिन अपनों के कड़े विरोध के बावजूद मलिक कमाल को 14 हजार वोट मिले और 19 हजार वोट पाकर जलील अब्बासी साहब विजयी रहे। जानकार बताते हैं कि उस बुढ़िया के लिए कमाल साहब जिस दिलेरी से एक अफसर से भिड़े उसकी गूंज पूरे क्षेत्र में थी। ऐसे में यदि उनके परिवार ने साथ दिया होता तो वह पहले ही प्रयास में विधायक बन जाते। एक कहानी यह भी है कि उस समय के मुख्यमंत्री स्व. हेमवती नंदन बहगंणा ने यदि बैलेट बाक्स तुड़वा कर घपला नहीं करवाया होता तो मलिक कमाल युसुफ परिवार के विरोध के बावजूद बड़ी आसानी से मंत्री जलील अब्बासी को हरा देते।

कुल मिला कर वह बूढ़ी औरत उनके राजनति में आने का मुख्य कारण बनी। न तहसीलदार से विवाद होता न कमाल साहब जलील अब्बासी साहब के बिरोधी होते और न हीं चुनाव में उतरते। लेकिन उनके विधायक बनने के बाद क्षेत्र में काफी विकास हुआ। हालांकि उस वक्त सरकारों के पास बजट की बेहद कमी होती थी। फिर भी उन्होंने सड़कें, छोटे पुल और नदी के किनारे तटबंधों का निर्माण बहुत तेजी से कराया। सहकारी समतियों को सक्रिय कर उनमें खाद बीज उपल्ब्ध कराये। उस वक्त विकास का अर्थ यही होता था। लोगों का मानना है कि गांवों के विकास के लिए मलिक कमाल यूसुफ अरसे तक याद किये जाएंगे।

मलिक कमाल युसुफ का राजनीतिक सफर

मलिक कमाल यूसुफ ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1971 में ग्राम प्रधान के चुनाव से की थी। उन्होंने 1974 में पहली बार विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें नाकामी हाथ लगी, लेकिन 1977 में विधानसभा चुनाव लड़कर पहली बार विधानसभा पहुंचे। जिसके बाद 1980 मे दूसरी बार तथा 1985 मे तीसरी तथा 2002 में चौथी बार और 2012 में पांचवीं और आखिरी बार विधायक बने।
वह 2003 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के नेतृत्व में सपा सरकार में राज्यमंत्री भूतत्व एवं खनिकर्म बनाए गए तथा 2004 से 2007 तक अध्यक्ष (राज्य मंत्री स्तर) उत्तर प्रदेश वक्फ विकास निगम लिमिटेड रहे। मलिक कमाल के चार पुत्र और चार पुत्रियां हैं। उनकी पत्नी इशरत जहां मलिक ब्लाक प्रमुख रह चुकी हैं। उनके बड़े बेटे इरफान मलिक पिता की सियासी विरासत को संभालने के लिए 2022 में एआईएमआईएम से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन सफल नहीं हुए। दूसरे बेटे सलमान मलिक ब्लाक प्रमुख डुमरियागंज और दो बार क्षेत्र पंचायत सदस्य रह चुके हैं।
डुमरियागंज की राजनीति की धुरी माने जाते थे कमाल

जमींदार घराने से संबंध रखने वाले पूर्व विधायक मलिक कमाल यूसुफ कुशल राजनीतिज्ञ थे। उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि, सरल स्वभाव, हंसमुख व्यक्तित्व के कारण डुमरियागंज क्षेत्र, जिला और प्रदेश में उनकी अलग पहचान थी। डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में सभी वर्ग के मतदाताओं में उनकी पकड़ बेहद मजबूत रही है। इसी का नतीजा रहा कि वह वर्ष 2012 में पीस पार्टी से भी विधायक बनने में सफल रहे। उन्होंने शिक्षा जगत में सराहनीय योगदान देते हुए सिरसिया स्थित राम मनोहर लोहिया कन्या इंटर कॉलेज, कादीराबाद में मौलाना आजाद इंटर कॉलेज और बायताल में मौलाना आजाद महाविद्यालय की स्थापना की थी।

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