… और अचानक टकरा गये सासंद पाल व बसपा प्रत्याशी आफताब, फिर क्या हुआ?
— सियासी रेगिस्तान में नखलिस्तान का एहसास करा गये दोनों सियासतदसन
नजीर मलिक
घोर प्रतिद्धंदिता के बीच सुखद पलों को साझा करते सांसद पाल और बसपा प्रत्याशी आफताब आलम
सिद्धार्थनगर। यह नफरत की सियासत का दौर है। सत्ता और प्रतिपक्ष के बीच गलाकाटू राजनीति आम होती जा रही है। चुनाव के दौर में उम्मीदवारों की आपसी प्रतिस्पर्धा कभी कभी खतरनाक स्तर तक चली जाती है। ऐसे में जब एक दूसरे के विरोध में चुनाव लड़ने का ख्वाब पाल रहे दो नेता अचानक मिल जायें तथा बेहद प्रेम और सौहार्द्रं के माहौल में चंद पल साथ साथ साझा कर लें तो नकारात्मक सियासत के इस दौर में उम्मीद की एक किरन रौशन होते दिखने लगती है। कम से कम कल भाजपा के मौजूदा सांसद जगदम्बिका पाल और बसपा के उम्मीदवार आफताब आलम की मुलाकात को देख कर ऐसा ही लगा।
कल यानी सोमवार को डुमरियागंज लोकसभा सीटे से सांसद बनने के दावेदार, अलग अलग दलों दो नेता पूरे लाव नश्कर के साथ क्षेत्र भ्रमण कर रहे थे। भ्रमण के दौरान बसपा के डुमरियागंज लोकसभा सीट के प्रत्याशी आफताब आलम विकास खंड उस्का बाजार क्षेत्र स्थित एक शिवमंदिर पर पहुंचे जहां, हजारों की भीड़ मौजूद थी। बताते हैं कि इसी बीच भाजपा सांसद पाल का काफिला भी मेले में पहुंच गया।
मेला स्थल पर बसपा उम्मीदवार आफताब आलम अनेक श्रद्धालुओं से मिल कर एक कुसी पर बैठे कुछ लोगों से वार्तालाप कर रहे थ्रे। उसी समय पाल साहब का कारवां भी मौके पर पहुंचा। भाजपा के कुछ वर्कर मौके पर बसपा की गाड़ियां देख जोश आ गये और वहां नारेबाजी करने लगे। जवाब में बसपा वर्करों ने जोरदार नारेबाजी शुरू कर दी। लग रहा था कि तनाव बढ़ने ही वाला है।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मौके पर बसपा नेता आफताब को पता चला कि वहां भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल भी मौजूद हैं तो उन्होंने बसपाई नारेबाजी को यह कहते हुए बंद कराया कि पाल साहब सीनियर नेता हैं, इसलिए उनका सम्मान होना चाहिए। इस पर बसपा वर्करों की नारेबाजी पर विराम लग गया। मौके की नजाकत भांप सांसद पाल भी आफताब आलम के पास पहुचें। बसपा प्रत्याशी आफॅताब आलम ने उन्हें सम्मान से बैठाया और दोनों नेताओं ने एक दूसरे को शुभकामना दी। दोनों ने एक साथ सुखद वार्ता के कुछ पल साझा किये।
सिद्धार्थनगर की सियासत का यह क्षण वाकई बहुत सुखद है। इससे अन्य लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। कौन जाने चुनाव में कौन जीतेगा, कौन हारेगा, लेकिन नेताओं की यह सकारात्मक सोच दर्शाती है कि बुध की धरती पर कुछ अच्छाइयां अभी बाकी हैं, जिसे अधिकांश क्षेत्रों में विलुप्त होते देखा जा रहा है। सलाम बुद्ध की माटी को।