सियासी संकट में फंसने के बावजूद वसूलों से न हटने वाले सांसद स्व. जलील अब्बासी

March 21, 2024 2:06 PM0 commentsViews: 613
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वह अविस्मरणीय दिन, जब अपने ही कार्यकर्ताओं की बहस पर स्व. सांसद ने ललकार कर कहा था, तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है, मुझे अल्लाह देगा वोट

नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। जिला बनने के बाद सिद्धार्थनगर में पहला लोकसभा का इलेक्शन 1989 में हुआ था। यह वह समय था जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेताओं का चलना दूभर था। एक तरफ बोफोर्स तोपों के सौदे पर दलाली के आरोप से कांग्रेस घिरी हूई थी तो दूसरी तरफ राम मंदिर की आंधी चल चुकी थी। मलियाना और हाशिमपुरा कत्लेआ की बजह से पूरा मुस्लिम समाज गुस्से में उबला हुआ था। उसी समय आम चुनावों की घोषणा हुई। कांग्रेस से लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले मरहूम काजी जलील अब्बासी डुमरियागंज लोकसभा सीट से तीसरी बार उम्मीदवार घोषित किया गया। स्व. अब्बासी स्वधीनता आंदोलन से निकले खांटी कांग्रेसी और ईमानदार नेता के रूप में जाने जाते थे। उनके मुकाबले स्व. बृजभूषण तिवारी जनता दल के टिकट पर संयुक्त विपक्ष के कैंडीडेट थे। उनका भी खांटी समाजवदियों में शुमार होता था।

चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो कांग्रेसी वर्कर हताश थे, वह जानते थे कि चुनावी आंधी कांग्रेस के खिलाफ है। जलील अब्बासी साहब की जिद भरी ईमानदारी के कारण कुछ कांग्रेसी  वर्कर भी उनसे बेहद खफा थे। कई तो हवा का रुख भांप कर जनता दल के खेमे में चले गये थे। मतलब यह है कि चौथाई कांग्रेसी नेता व कार्यकर्ता भी काजी जलील अब्बासी के खिलाफ थे। स्व. अब्बासी डुमरियागंज तहसील के बयारा गांव के निवासी और स्वाधीनता सेनानी थे।वह ईमानदारी के मुद्दे पर किसी से कोई समझौता नहीं कर सकते थे।

लोग समझते थे कि इस चुनाव में काजी जलील अबासी साहब बुरी तरह से जरूर हारेंगे। इसी दौरान एक कार्यकर्ता बैठक में जलील अब्बासी साहब और कुछ वर्करों में नोकझोंक हो गई। उन लोगों के बीच एक वरिष्ठ अल्पसंख्यक कार्यकर्ता अख्तर हुसैन ने  सांसद काजी साहब की बात न सुनने की जिद को देख कर कहा कि ऐसे उम्मीदवार को भला वोट कौन देंग, जो अपने कार्यकर्ताओं की भी बात नहीं सुनता। यह सुन काजी साहब खड़े हो गये। उन्होंने अपने ही वर्करों को ललकारा और कहा कि हमने राजनीति में बेइमानी नहीं की है। हमने कभी फिरकापरस्ती की राजनीति नहीं की है। हमारी नीयत अल्लाह जानता है। जिन्हें मै पसंद नही हूं वह मेरा साथ छोड़ कर चले जायें। आप मुझे वोट न दिलाये। मुझे मेरा अल्लाह वोट दिलायेगा।

बहरहाल चुनाव प्रचार हुआ। नमाजी होकर भी सनातनी कर्मकांड के साथ शिलान्यास, उद्दघाटन करने वाले सेक्यूलर कांग्रेसी नेता स्व. अब्बासी कार्यकर्ताओं के अभाव के बावजूद जलील अब्बासी साहब पूरे हौसले से लड़ रहे थे। बढ़ती उम्र और एक पैर खराब होने के बावजूद वह गांव सड़क की धूल फांकते रहे। लोग कहते कि आपको वोट मांगने की क्या जरूरत, आपको तो अल्लाह वोट देगा। जवाब में वह बेखौफ कहते कि ‘हां मुझे अल्लाह की जात पर भरोसा है।’ बहरहाल वोटों कि गिनती हुई तो काजी जलील अब्बासी को 1 लाख 99 हजार वोट मिले जो उस वक्त के हालात से बहुत ज्यादा थे।  दूसरी तरफ बृजभूषण तिवारी को 2 लाख 64 हजार वोट मिले। इस प्रकार स्व. अब्बासी अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन का दूसरा  चुनाव वह मा 65 हजार मतों से हारे। इसे पूर्व वह 1977 में विधायक का चुनाव हारे थे।

सिद्धार्थनगर जिले के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की इस हार के बाद वह एक बार को छोड़ कर अब तक कभी लोकसभा सीट नही जीत पाई है। स्व. जलील अब्बासी आज नहीं हैं, लेकिन उनके वसूल और जिद की हद तक की ईमादारी की चर्चा आज भी होती है। राजनीति में जीत के लिए वसूलों से कोई समझौता न करने वाले स्व. काजी जलील अब्बासी के बाद वसूलों की राजनीति की धीरे धीरे मौत होने लगी। अब तो “वसूल किस चिड़िया का नाम है”, यह सवाल नेता लोग ही आम तौर से करते मिल जाते हैं।

 

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