मुस्लिमों को अपने पाले में लेने में जुटीं, मायावती, अखिलेश मुंगेरी लाल के सपनों में व्यस्त
नजीर मलिक
“सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक लाइन त्याग कर मुंगेरीलाल के सपनों की हसीन दुनियां में विचरण कर रहे हैं।उनके राजनीतिक तौर तरीकों से प्रदेश का मुस्लिम समाज हताश ही नही समाजवादी पार्टी से निराश भी है। बसपा सुप्रीमों मायावती इस हालात को बखूबी समझ चुकी हैं और वह मुस्लिमों में अपना जनाधार बढ़ाने की मुहिम में बड़ी खामोशी से जुट गई हैं।”
मायावती मुस्लिम चेहरों में मिलने में जुटीं
बताया जाता है पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने यूपी के मुस्लिमों में जनाधार बढ़ाने के लिए गत 27 जून से प्रदेश के प्रमुख मुस्लिम चेहरों से मुलाकात का सिलसिला शुरू कर दिया है। वे उनकरे भरोसा दिला रहीं है कि अब उनकी पार्टीभाजपा से रिश्ते नहीं रखेगी। दूसरी तरफ वह मुस्लिम नेताओं को यह भी समझाने में जुटी हैं कि जब चुनावों में यादव मतदाता ही भाजपाई हो जायेगा तो सपा को जीत कहां से मिलेगी?
दो मुस्लिम सांसदों को मिली कमान
बताया जाता है कि सन 22 के विधानसभा चुनावों के लिए उन्होंने मुलिम बहुल सीटों का चयन कर उन पर मुस्लिम उम्मीदवारों को लड़ाने का मन बनाया है। इसके लिए वे मुख्तार अंसारी के भाई सांसद अफजाल अंसारी व सांसद हाजी याकूब आदि के साथ रणनीति बनाने में जुटीं हैं। गौर तलब है कि अपनी इस रणनीति में उन्होंपे कई ब्राहमण नेताओं को भी साझीदार बना रखा है। दरअसल में कांग्रेस के पुराने फार्मूले दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण की एकजुटता पर पूरी गंभीरता से लग गई हैं।
यादव सपा के साथ नहीं तो मुस्लिम क्यों रहे
लखनऊ के सूत्रों का कहना है कि मुसलमानों की समस्याओं पर अखिलेश आदव की चुप्पी से प्रदेश का आम मुसलमान बहुत आहत हैं। वह समझ रहा है कि सादव वर्ग का बड़ा हिस्सा हिंदू राष्ट्रवादी होकर भाजपा के साथ खंड़ा है। जो यादव सपा के साथ हैं भी वह मुसलमान पा उम्मदवारों को वोट नहीं देते। ऐसे में मुसलमानों में यह समझ बन रही है कि अब उसे सपा के बजाये कोई और विकल्प चुनना है और मायावती जी इसी का लाभ उठाने लिए मेंहनत कर रही हैं।
मुस्लिम विधायकों तक की नहीं सुनी जाती
दरअसल मायावती की रणनीति गलत भी नहीं है।आजमगढ़ के मुस्लिम समाज विज्ञानी इफ्तखार आलम कहते हैं कि अब मुस्लिम समाज सपा से नाता तोड़ने के कगार पर है। जब आजम गढ कई बार के विधायक और सूबे के सबसे इमानदार नेता आलम बदी साहब तक की नही सुनी जाती। मुलमानों के माब लिंचिंग पर अखिलेश की जुबान नहीं खुलती, यादवों मुकबले मुसलमानों को तरजीह नहीं मिलती, तो मुसलमान उनके साथ्र क्यों रहेगा।
छुटभैयों की है पौ बारह
सपा के ही एक बडे मुस्लिम पदाधिकारी का कहना है कि उन्हें पता तक नहीं चलता है और एक छूटभैया यादव नेता आकर उनके लोगों को पार्टी से बाहर करवा देता है। अब सब्र का पैमाना भर रहा है और अखिलेश मुंगेरी लाल की तरह सपना देख रहे हैं कि मुलायम सिंह के लिए जान देने वाला मुसलमान उनके लिए भी जान देता रहेगा। उनका कहना है कि अगर अखिलेश न सुधरे तो आम मुसलमान क्या, सपा के अनेक मुस्लिम नेता भी विधानसभा चुनावों से पहले बसपा का दामन पकड़ने से नहीं चूकेंगे।