हम गरीब पहाडियों को “हाम्रो नेपाल” भेज दो न सरकार, कब तक पड़े रहें ‘नो मेंस लैंड’ में

May 9, 2020 12:35 PM0 commentsViews: 988
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नेपाल बार्डर से सग़ीर ए ख़ाकसार

नेपाल सीमा। हम मज़दूरों को  गांव हमारे भेज दो सरकार

सूना पड़ा घर दुआर।।

हम को न पता था कि ये दिन भी आएंगे

कोरोना के कारण घरों में सब छुप जाएंगे।।

हम तो पापी पेट के कारण झेल रहे हैं मार

सुना पड़ा घर दुआर।।

 यह वेदना उन नेपाली मज़दूरों की है जो फिलवक्त भारत़-नेपाल सीमा के “नो मेंस लैंड”पर फंसे हैं। इनकी तादाद करीब पांच सौ के पार बताई जाती है। नो मेंस लैंड अर्थात स्वामित्व विहीन भूमि इस पर किसी देश का स्वामित्व नही होता है यह दो देशों के सरहदों के बीच की खाली पड़ी ज़मीन होती है। भारत नेपाल सीमा के इस जगह को “दस ग़ज़ा “भी कहा जाता है।यही स्वामित्व विहीन भूमि फिलवक्त नेपाल अपने घर लौटने के इच्छुक सैकड़ों प्रवासी मज़दूरों का नया आशियाना है। भारत के गांव शहरों में रोतों को घूम घूम सबके घरों की सुरक्षा करते हैं, मगर आज संकट की इस घड़ी में मदद करने वाले सीमा क्षे़त्र के भारतीयों का पता नहीं है।

सिद्धार्थनगर जिले की सीमा से सटे  नाका, शिवलवा, चाकड़  चौड़ा,  गौरा, रंगपुर, मर्यादपुर, हरदौना, भिलमी, कृष्ण नगर आदि जगहों पर ये मज़दूर फंसे हुए हैं।हज़ारों मील का मुश्किल  सफर तय करने के बाद भी अभी इनका सफर खत्म नही हुआ है। इन्हें नो मेंस लैंड पर रोक दिया गया है।इनकी तादाद करीब पांच सौ के पार हैं, जिनमें उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। यह तदाद कितने पर आकर रुकेगी, कोई पता नहीं।

नेपाल के ये प्रवासी मज़दूर भारत के विभिन्न शहरों में कोरोना महामारी के कारण उतपन्न तबाही की वजह से घर लौट रहे हैं।यह मज़दूर खुले आसमान के नीचे रहने को विवश हैं।नो मेंस लैंड पर ही नेपाली प्रशासन ने अस्थायी रूप से रहने और भोजन आदि का प्रबंध तो कर दिया है।कुछ ने पेड़ों पर आशियाना बना लिया है तो कुछ ने  झाड़ियों को चादर से घेर कर रहने का जुगाड़ कर लिया है।कुछ पेड़ के नीचे ही रहने को मजबूर हैं।बुधवार की  रात ऐसे मज़दूरों पर भारी गुज़री और सुबह और बड़ी तबाही लेकर आई।अंधी और तेज़ तूफान की भी मार भी इन्हें झेलनी पड़ी।

कृष्ण नगर के मेयर रजत प्रताप शाह ने बताया कि भिलमी बॉर्डर पर खुले रुके मज़दूरों को खराब मौसम को देखते हुए एक स्थानीय स्कूल में शिफ्ट कर दिया गया है।कृष्णनगर बॉर्डर पर फंसे मज़दूरों को ठकुरापुर स्वास्थ्य चौकी पर स्थान्तरित किया गया है। शाह ने बताया कि ऐसे प्रवासी मज़दूरों की संख्या हर रोज़ करीब सौ की तादाद में बढ़ रही है जो कि बड़ी चुनौती है।उन्होंने बताया कि ये सभी नेपाल के दांग, वर्दियां, अर्घाखाँची, पियुठान आदि जिलों के रहने वाले हैं। चूंकि मामला अंतराष्ट्रीय है । अतः सबसे पहली चुनौती इन्हें संवैधानिक रूप से नेपाल में प्रवेश कराने की है और फिर कोरन्टीन कराकर इन्हें घर भेजना है। नेपाली प्रशासन पूरी तरह से इसके लिए प्रयारत है।रजत प्रताप शाह ने कहा कि यह मुश्किल घड़ी है लेकिन हम पूरी तरह से इनके व्यवस्थापन के लिए प्रतिबद्ध हैं।

 

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