नेपाली नालों के चैनलाईजेशन से होती है सीमाई इलाके में सैलाबी विनाशलीला

July 1, 2025 12:54 PM0 commentsViews: 78
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नेपाल में छोटे छोटे पहाड़ी नालों नदियों से जोड़ कर भारत भेजा

जा रहा कृतिम सैलाब, इनडेशन कमेटी में भी नहीं उठा यह मुद्दा

नजीर मलिक

बानगंगा नहीं के माध्म से जिले में आता नेपाल का पानी

सिद्धार्थनगर। जून महीने में दो तीन दिनों की बरसात के बाद जिले की सभी नदियों का जलस्तर बढ़ गया है। जूलाई में जिस दिन भी भारी बारिश हुई नदियां अपने जलस्तर को तेजी से बढ़ा कर सैलाब का मंजर कायम करने लगेंगीं।  सिद्धार्थनगर जैसे तराई क्षेत्र में दो तीन बार की भारी बारिश के बाद ही नदियां सैलाबी तबाही को जन्म देने लगती है। हर साल 50 हजार से एक लाख हैक्टेयर फसल बरबाद होती है। तटबंधों और मार्गो के टूटने से करोड़ों की हानि होती है। इसके अलावा खाद्य पैकेट बांटने, शरणालय बनाने और पेट्रोलिंग पर विशाल धनराशि खर्च हो जाती है। इसी आपदा में सरकारी कारिंदे भी लाखों का वारा न्यारा कर लेते हैं।

सवाल है कि हर साल की सैलाबी त्रासदी का कारण और उसका निवारण क्या है। जानकारों के अनुसार नेपल के पहाड़ों पर प्रतिवर्ष भारी वर्षा होती है। पहाड़ का पानी  बह कर मैदानी इलाकों तक आता है। पहले यह नेपाल की तराई में फैलता था, उससे बचने के बाद बाकी पानी नदियों के सहारे  भारत में आता था। इससे दो चार दिनों के लिए सैलाबी रहता था, फिर नदियां शांत हो जाती थीं।

सूत्रों के अनुसार अब हालात काफी बदल गये हैं। हाल के दशकों में नेपाली निर्माण ऐंजेंसियों ने पहांड़ों से आने वाले छोटे छोटे नालों को चैनलाइज कर उन्हें भारतीय क्षेत्र से गुजरने वाली नदियों से जोड़ दिया है। इसी का नतीजा है कि नेपाल की तराई तो बाढ़ मुक्त हो गई, लेकिन वहां फैलने वाला पूरा पानी नदियों के माध्यम से भारतीय सीमा में आने लगा और उसका दबाव बढ़ कर दो गुना हो गया। जिसकी परिणिति साल दर साल सैलाब से होने वाली तबाही के रुप में सामने आने लगी

जानकार बताते है कि बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए भारत-नेपाल में इनडेशन कमेटी बनी थी, जो हर साल बैठक कर समस्या पर विमर्श करती थी, लेकिन इस कमेटी में कभी यह बात गंभीरता से नहीं उठाइ गई। नतीजा यह हुआ कि नेपाल नालों का चैनलाइजेशन करता रहा और जिले में साल दर साल सैलाब की भीषणता बढ़ती रही।

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