नोटबंदी की सबसे बुरी मार किसान, मजदूर पर, अब तो चूल्हों के बंद होने की नौबत

November 15, 2016 12:46 PM0 commentsViews: 458
Share news

नजीर मलिक

line1
सिद्धार्थनगर। नोट बंदी का आज सातवां दिन है। इन सात दिनों में गरीब और मध्यम वर्ग का कचूमर बन रहा है। मजदूर वर्ग के सामने जहां अब चूल्हे जलाने की समस्या हो गयी है। वही मझोला वर्ग के रोजमर्रा के काम बंद होने लगे हैं। लोग बैंकों से निराश होकर लौट रहे हैं। एटीएम भी घंटे दो घंटे के बाद दम तोड़ दे रहे हैं।

line2
कल बंदी कीे वजह से आज बैंकों पर अपेक्षाकृत अधिक भीड़ लगी हुई है। लोगों का भोर से ही लाइनों में लगना शुरू हो गया है। 9:30 बजे तक जिला हेडक्वार्टर के सामने लंबी-लंबी कतारे लगीं थीं। आदमी हर हाल में पैसा पाने के लिए बेताब था। लेकिन भीड़ के कारण उसे पसीने छूट रहे थे।

नहीं मिल रही दिहाड़ी
आम तौर पर गांव के मजदूर जिला हेडक्वार्टर पर काम के लिए आते थे और सिद्धार्थ तिराहे के पास इक्ट्ठा होते थे। वहीं से जरूरतमंद उन्हे हायर करते थे। लेकिन आज 10:00 बजे तक भी सैकड़ाें मजदूर निराश खड़े थे। उन्हें काम नहीं मिल रहा है।

मकान निर्माण करा रहे ताहिर अली का कहना है कि मजदूरों को खुल्ला रूपये चाहिए और अब हमारे पास खुल्ले नहीं है। एैसे में हम मजदूर हायर नही कर पा रहे है।

पटनी जंगल के दिहाड़ी मजदूर रतन ने बताया कि हमनें पिछले सात दिनों से जहां काम किया वहां से कोई पैसा नहीं मिला। आज भी किसी ने उसे काम नहीं दिया। हर तरफ खुल्ले का संकट है। लेकिन अब हम जैसे मजदूरों के सामने अब चूल्हा जलाने का संकट खड़ा हो गया।

जिला अस्पताल पर परेशान खड़े परसपुर गांव के अयोध्या का कहना है कि डाक्टर ने बाहर की दवा लिख दी है। लेकिन छोटी नोट के अभाव में दुकानदार उसे दवा नही दे रहे। कमोबेश यही हालत हर गांव कस्बे की है। पूरा जिला छोटे नोटों की कमी से कराह रहा है।

किसान भी है बेहाल
सबसे बुरी हालत किसानों की है। रबी की बुआई का सीजन चल रहा है। इसके अलावा शादियों का भी दौऱ जारी है, मगर किसानों का धान नहीं बिक पाने के वजह से उनकी रबी की बुआई प्रभावित हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान वर्ग शादी विवाह की तिथियों को टाल रहा है।

कुल मिला कर नोटबंदी के सातवें दिन भी हर तरफ अफरा तफरी का आलम है। इस बात के आसार नहीं दिखते कि स्थिति में जल्द कोई सुधार होगा। प्रगतिशील किसान रमेश चौधरी कहते हैं कि सरकार के इस अप्रत्याशित फैसले की सबसे अधिक मार गांव के मजदूर व किसान वर्ग पर  ही पड़ी है।

Leave a Reply