Exclusive– प्रधानी की राजनीति के चलते गांवों में दफ्न हो जा रहा करोना के खिलाफ जंग का जज्बा

June 20, 2020 1:26 PM0 commentsViews: 558
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— ग्राम प्रधानी के चुनावबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बिना मुमकिन नहीं है कोरोना की रोक़-थाम

— जिले के 4 लाख श्रमिक रहते है देश के महानगरों में, लालच ने उन्हें बनने दिया कोरोना के प्रति असावधान

नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर।

तमाम गांव के लड़कों को कर रही बरबाद,

हमारे घर की सियासत है या तवायफ है।

यह पक्तियां आज हमारे गांव के लिए सटीक बैठती हैं। जरा सोचिये कि देश लगभग ढाई महीने से करोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। इस जंग में शामिल हर व्यक्ति को करोना योद्धा के खिताब से नवाजा जा रहा है, मगर गांव की सियासी तवायफ ऐसी हर कोशिश को दफ्न करने पर तुली हुई है। सिद्धार्थनगर में इसी राजनीति ने तकरीबन चार लाख प्रवासी कामगारों को कोरोना के खतरे के प्रति लापरवाह बना दिया है, आने वाले दिनों में जिसका नतीजा सभी को भुगतना पड़ सकता है।

गांव में बिछ चुकी है कोरोना को लेकर शतरंज की बिसात

गांव में बिछ चुकी है कोरोना को लेकर शतरंज की बिसात

जब करोना का प्रकोप सामने आया उस वक्त ग्राम प्रधानी की पांचवां साल था। यानी हर कोई जानता था कि इसी साल के सितम्बर 2020 में चुनाव सम्भावित हैं। लिहाजा गांवों में राजनीतिक शतरंज की बिसात बिछ गई। जिस में ग्राम प्रधान और आगामी चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले कई अन्य लोग खिलाड़ी की भूमिका में थे। सब अपनी चालें चलने में लगे थे। कोई गांव में गुटीय तनाव फलाने की कोशिश में लगा तो कोई मतदाताओं को पटाने के नये नये हथकंडे अपनाने में लग गया।

संयोग से तभी बिल्ली के भाग्य से छींका फूट गया। अप्रैल के मध्य से गांव छोड़ कर कमाने के लिए शहर में रह रहे कामगारों का जत्था गांव वापस आने लगा। इस बीच सरकार ने एलान कर दिया दिया कि ऐसे सारे प्रवासियों को कोरंटाइन करना होगा तथा गांव में आये ऐसे सभी लोगों की सूचना ग्राम प्रधान द्धारा प्रशासन को भी देनी होगी। सरकार का यह आदेश देश और समाज हित में था, मगर गंवई राजनीति के शातिर खिलाड़ी इसमें पंचायत चुनाव की जीत में देखने लगे।

हुआ यह कि प्रवासियों का जब भी कोई जत्था गांव में आता, तो अधिकांश ग्राम प्रधान उसे छुपाने लगे या करंटाइन के लिए बने स्थानों मेंउन्हें आने जाने की छूट देने लगे। उन्हें अपने घरों में बना लजीज से खाना, पान बीड़ी आदि पहुंचाने लगे। यही नही आगामी चुनाव लड़ने की अच्छा रखने वाले भी इसमें शामिल हो गये। इस प्रकार करोना से गवने के लिए बनाई गई रणनीति विफल होने लगी।

बाहर से आए प्रवासियों की सूचना छिपा रहे चुनावबाज

उदाहरण के लिए शोहरतगढ़ तहसील के ग्ररम भटमला में आये प्रवासियों की बात कई दिनों तक छुपाई गई। लेकिन जब एक व्यक्ति बीमार हुआ तो पोल खुली कि वहां काफी लोग आये हैं। प्रशासन ने गांव सील कर दिया तो भी लोग पुलिस वालों को पटा कर बेधड़क गांव से बाहर आते जाते रहे। ऐसी ही हालत अधिकांश गांवों की है। लुचुईया, भाद मुस्तहकम जैसे किसी भी गांव को चेक करेंने पर यही सच्चाई सामने आयेगी।

सिद्धार्थनगर जिले के हैं सबसे अधिक प्रवासी

सिद्धार्थनगर जिले के हैं सबसे अधिक प्रवासी

इसका सबसे बडा कारण है बाहर रहने वाले कामगारों की संख्या। एक अनुमान के अनुसार गोरखपुर, बस्ती, देवी पाटन आदि मंडलों में सिद्धार्थनगर एक मा़त्र जिला है, जहां के सर्वाधिक चार लाख लोग मुम्बई, दिल्ली गुजरात के वापी, अहमदाबाद आदि देश के कई महनगरों में बसते हैं। जिनमें से तकरीबन पौने दो लाख गांव वापस आ चुके हैं अैर अभी आते ही जा रहे हैं।सदि एकगांव में मुम्बइयों कीऔसत पचास में मान लिया जाये तो प्रधानी के चुनाव में इसकी क्या भूमिका होगी। लिहाजा देश और समाज भले ही भीड़ में जायेए चुनावबाजों को इससे नहीं केवल अपनी जीत से ही मतलब है।

इस बारे में एक चिकित्सक का कहना है कि जब तक गांव की निचली इकाई यानी प्रधान, आशा बहू, आंगनबाड़ी और हलका पुलिस आदि शासन को सहयोग नहीं करेंगे, तो कोरोना को रोक पाना कठिन होगा। ऐसे में एक ही सूरत है कि गांवों में इस प्रकार की हरकत करने वालों को तत्काल गिरफ्तार किया जाये। जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक द्धारा कड़ी कार्रवाई के बिना करोना की रोक था कठिन है।

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