असली रमजानः 10 दिनों में कोरोना पीड़ितों को एक करोड़ रुपये की ऑक्सीजन पहुंचा चुके हैं प्यारे खान

April 30, 2021 12:39 PM0 commentsViews: 351
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जावेद खान

मुम्बई। रमजान के पाक महीने में इससे बेहतर जकात व सवाब और क्या हो सकता है कि सांसों के लिए तड़प रहे कोरोना संक्रमितों तक वक़्त पर ऑक्सीजन पहुंचा दी जाए। नागपुर के बड़े बिजनेसमैन प्यारे खान आजकल यही काम कर रहे हैं।. बीते 10 दिनों में ही उन्होंने कोरोना पीड़ितों  की मदद के वास्ते तकरीबन एक करोड़ रुपए ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए खर्च कर डाला है। इसके फलस्वरूप मजबूर कोरोना संक्रमितों के लिए 400 मीट्रिक टन ऑक्सीजन अस्पतालों में  भेजी जा सकी है। उनका मानना है कि यह रमजान उनके लिए सबसे अहम है।

मध्य भारत के कोरोना पीड़ितों में आज वह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के खिताब मिसाइलमैन की तरह आक्सीजनमैन के रूप में अपनी पहिचान बना रहे हैं। नागपुर में  रह कर अपना कारोबार करने वाले प्यारे खान अभी तक नागपुर सहित रायपुर, भिलाई, राउरकेला जैसी जगहों पर ऑक्सीजन सिलेंडर्स सप्लाई करा चुके हैं. उन्होंने अपनी मदद का हाथ बढ़ाते हुए एम्स सहित अन्य अस्पतालों में 50 लाख रुपए की कीमत के 116 कॉन्सेंट्रेटर्स उपलब्ध करवाए हैं। अनेक पीड़ित परिवारों या अन्य ने कई बार इसकी कीमत भी देनी चाही लेकिन हर बार वे यही जवाब देते हैं कि रमजान  महीना है। इतना खिदमत करने का हक तो बनता ही है।

कौन हैं प्यारे खान भाई

प्यारे खान नागपुर के बड़े ट्रांसपोर्टर और लगभग 400 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। इनके पास 300 निजी ट्रकें हैं और करीब 2000 ट्रकों का नेटवर्क बना कर कारोबार करते हैं। आज इनका इनका कारोबार नेपाल, भूटान और बांग्लादेश तक फैला हुआ है। प्यारे खान एक अराजनीतिक और धर्म पर अमल करने वाले एक बिजनेसमैन हैं, जो यह मानते हैं कि इंसानियत मजहब की सबसे पहली व मजबूत सीढ़ी है। वह अपनी गरीबी आज तक नहीं भूले हैं। इसलिए जानते है कि किसी मजबूर की मदद करना कितना अजीम काम है।

झाेपड़ी में की है गुजर बसर

बता दें कि प्यारे खान किसी अमीर घराने से नहीं थे।  यह पिता के साथ ताजबाग इलाके की झोपड़ियों में बचपन की  गुजर बसर करते थे।  प्यारे खान ने खुद 1995 में नागपुर रेलवे स्टेशन के सामने संतरे बेचने से अपने धंधे की शुरुआत की थी. इसके बाद ज़िंदगी में क्या-क्या नहीं किया. ऑटो चलाया, ऑर्केस्ट्रा में काम किया और दिन रात कड़ी मेहनत कर आज एक  बड़ा बिजनेस एंपायर खड़ा कर लिया।  इनकी सक्सेस स्टोरी आईआईएम अहमदाबाद में केस स्टडी के तौर पर पढ़ाई जाती है। सो आप भी अपने आस पास किसी परेशन को देख कर मदद के लिए हाथ बढ़ाइये, क्यों की दंसानियत ही मजहब की पहली और सबसे मजबबूत पायदान है।

 

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