सैलाब: भागने के लिये न नावें हैं न मोटरबोट, भूख से बिलबिलाना ही नियति

August 20, 2017 1:27 PM0 commentsViews: 666
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नज़ीर मलिक

                                         केले के पेड़ की नाव बना कर समान निकालते बैरवा के लोग

 

सिद्दार्थनगर। ऊपर का चित्र जोगिया क्षेत्र के ग्राम बैरवा नानकार का है। गाँव के लोग पिछले सात दिनों से बाढ़ में फंसे हैं। निरंतर भूख और प्यास से व्याकुल होकर अब जान हथेली पर रख कर पानी से बाहर भाग रहे हैं। विनोद सहित अब तक 50 लोग किसी तरह गाँव से निकल कर किसी तरह बंधे पर पंहुच पाये हैं।

ज़िले में सैलाबी हाहाकार के बीच गाँव से पलायन की ये अकेली घटना नहीं है। ऐसे हालात राप्ती और बूढी राप्ती नदी के दोआबे में हर जगह देखने को मिल जाएंगे।
ककरही घाट के बंधे से पूरब् बढ़िए तो बंधे के इर्दगिर्द तमाम गावो में भागते लोगों की चीख और भूखे प्यासे बच्चों की बिलबलाहट ही सुनाई पड़ेगी। यहीं पे बाढ़ में फंसे ग्राम बंगरा सहित केवतलिया, गोन्हा आदि एक दर्जन गांवों के लोग 6 दिनों से प्रशासन से गुहार मचा रहे हैं। एसडीएम को भी सूचना दी, लेकिन कोई उनकी खोज खबर नहीं ले रहा। बैरवा के भगौती यादव कहते हैं कि लोग मर रहे है और ज़िल प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ है।

राहत बचाव के लिए जूझ रहे लोग 

ककरही घाट के पच्छिम जहाँ पर अशोगवा तटबंध 5 दिन पहले टूटा था, वहाँ की हालत भयानक है। ग्राम सत्वाढ़ी, नॉवेल, नरकटहा, छपिया, चवरताल के कुछ लोग गाँव से निकल आये हैं, शेष भूखे प्यासे पानी से घिरे हैं। चवरताल के दर्जनों लोगो को एनडीआरएफ की टीम ने ज़रूर बचाया है। सैकड़ों लोग तटबंधों पर शरण लिए हुए है, जहाँ रहत नहीं पहुच पा रही है।
दरअसल ये हालत आधे ज़िले की है। शोहरतगढ़ इलाके के ग्राम तौलिहवा में घरों में पानी घुसा, पक्के मकान तक क्षतिग्रस्त हुए, मगर कोई बचाने वाला नहीं है। नज़रगढ़वा गाँव के मकानों में पानी घुस गया है। और तो और जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर ग्राम परसा में प्रसव के लिए महिला छटपटाती रही। ग्रामीणों ने अफसरों को फोन भी किया मगर कोई मदद नहीं मिली। मजबूरन ग्रामीण महिला को ड्रम में डाल कर बहार लाये और प्रसव कराया।

लोगों ने ख़ुद किया तटबंध की मरम्मत 

बूढी राप्ती के तट पर ग्राम मझवन निवासी असगर अली खान पेशे से इंजिनीयर हैं। वे बताते हैं कि इससे बुरा प्रशासन मैंने कभी नहीं देखा। उनके गांव में बंधा रिस रहा था, तमाम फोन किये गए, मगर किसी अफसर ने फोन नहीं उठाया। गाँव वालों ने 12 घण्टे खुद ही मेहनत कर बंधे को बचाया। वे कहते है कि गाँव के सर पर आफत थी, मगर वो जान बचाने के बचाये तटबंध बचा रहे थे। आखिर वे भाग कर जाते कहाँ, भागने के लिए नावें भी नहीं थीं। याद रहे की 1998 की बाढ़ में इसी गाँव से सटा मुर्गाहवा गाँव पूरा का पूरा नदी में विलीन हो गया था। फिर भी प्रशासन ने नोटिस नहीं लिया।

प्रशासन की ज़बरदस्त आलोचना 

इस बार की बाढ़ में प्रशासन की लापरवाही की आलोचना हर तरफ हो रही है। सत्तापक्ष और विपक्ष सभी ज़िला प्रशासन को दोषी ठहरा रहे हैं। बीजेपी पदाधिकारी सरोज शुक्ला कहतीं हैं कि इस भयानक बाढ़ में प्रशासन द्वारा नावों का इंतज़ाम न करना बेहद शर्मनाक है। सांसद जगदंबिका पाल खुद ही प्रशासन की आलोचना कर चुके हैं।
सपा नेता उग्रसेन सिंह कहते हैं कि पूरा शोहरतगढ़ क्षेत्र सैलाबी से कराह रहा है, मगर अफसर को प्रभावी कार्रवाई नहीं कर रहे। इटवा विधान सभा क्षेत्र के बसपा नेता अरशद खुर्शीद का कहना है कि जिस प्रदेश का मुखिया ज़िले में बाढ़ क्षेत्र के दौरे पर कार्पेट पर चल कर नाव पर सवार होता हो, वहां अफसरों से कोई उम्मीद कैसे की जा सकती है। सपा नेता बेचई यादव ने प्रशासन से राहत और बचाव के काम में तेज़ी लाने की अपील की है।

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