नजरिया- इमरान प्रतापगढ़ीः शायर या क़ौम के खिदमतगार ?
जावेद खान
मुम्बई। युवा और प्रसिद्ध शायर इमरान प्रतापगढ़ी आज बुलंदियों के मुकाम पर हैं। उनकी रचनाए सुनने के लिए मुशायरों में जबरदस्त भीड़ उमडती है। वह आज महंगे शायरों में शुमार किये जाते हैं। वह एक शायर के साथ–साथ कौम के खिदमतगार के रूप में भी नाम कमा रहे हैं। सवाल है कि इमरान शायर हैं या कौम के खिदमतगार, या उनमें दोनों ही शिफत मौजूद है।
उत्तर प्रदेश के ज़िले प्रतापगढ़ के एक छोटे से कस्बे पट्टी के निवासी 29 वर्षीय इमरान आज के दौर में अपनी सीधी-साधी हिन्दी-उर्दू ज़ुबान से मौजूदा व्यवस्था और समाज पर प्रहार करते हुए बेहद लोकप्रिय हो गया और यह मुशायरे के उस मंच से संभव हुआ जो गेसू , आशिक , मशूका , के रुखसार की तारीफ़ तक केवल “वाह-वाह” और “इर्शाद और मुकर्रर इर्शाद” तक सीमित था। लेकिन इमरान ने इसे मोड़ कर नज्म और गजल को नया तेवर दिया।
बात कड़वी लगेगी पर सच यह है कि मुशायरे के मंच से इमरान जो काम कर रहे हैं, हकीकत में यह काम देश के मुसलमान नेताओं को करना चाहिए। ज़्यादा पुरानी बात नहीं करूँगा, पिछले 2 वर्षों के अंदर मुसलमानों पर हुए उत्पीड़न पर हर पार्टी के मुसलमान नेताओं का व्यवहार देखिए और उसकी विवेचना कीजिए तो, आपको खामोशी ही मिलेगी। और यह घटनाएँ खामोशी में खो भी जातीं अगर मुशायरे का मंच ना होता और उस मंच पर इमरान प्रतापगढ़ी ना होते।
मिसाल के तौर पर नजीब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से 14 अक्टूबर 2016 को गायब हुए और इतने दिनों 21 अक्टूबर तक 7 दिनों में कुछ एक दो तीन दिन धरना प्रदर्शन हुआ जिसमें 20-25 छात्र भाग लिए परन्तु नजीब मुद्दा बने 22 अक्टूबर 2016 को जामिया मुशायरे में दिल्ली के तमाम मंत्री और उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी में जब इमरान प्रतापगढ़ी “नजीब” की नज़्म सुनाया तो वहां बैठे दिल्ली के हुक्मरानों को झगझोरा और दिल्ली के मुख्यमंत्री तक वह दर्द पहुँची और अरविंद केजरीवाल जवाहर लाल विश्वविद्यालय पहुँच कर आंदोलन का समर्थन करते हुए इसे विश्वविद्यालय के बाहर लाने की बात करते हैं । फिर यह मुद्दा उठता चला गया।
केवल नजीब ही नहीं , मदरसे पर लगते आतंकवादी आरोपों का जवाब “मत जोड़ो आतंकवाद का नाम मदरसों से” से मुम्बई से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है। मदरसा, बेगुनाह मुसलमानों की गिरफ्तारी, अदालतों द्वारा सैकड़ों मुसलमानों को 10-20 साल बाद बेगुनाह होने का निर्णय, अखलाक, मजलूम, मिन्हाज , मेवात और भोपाल फर्जी इनकाउंटर तक बढ़ता यह सिलसिला यदि कोई नेता सांसद और विधानसभा के लिए उठाने लायक नहीं है, तो यह देश के मुसलमानों की बिखरी उस ताकत की वजह से है जो गट्ठर की लकड़ियों की तरह खुलकर बिखर गयी हैं। इमरान इसे जोड़ने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं।
सच तो यह है कि “इमरान प्रतापगढ़ी” शायरी नहीं करते, बल्कि मुशायरे के मंच से कौम को इन्हीं घटनाओं को नज़्म की शक्ल में पढ़ कर झकझोरते हैं और गट्ठर तोड़कर बिखर गयीं उन सभी लकड़ियों को बाँधकर फिर से मज़बूत करने कि कोशिश करते हैं और वह भी मुशायरे के मंच से।