सिद्धार्थनगर की सभी पाच सीटों पर मतदान प्रतिशत कम होना किस बात का संकेत का है?

March 4, 2022 1:19 PM0 commentsViews: 673
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सबसे अधिक मतदात 55.04 प्रतिशत कपिलवस्तु सीट पर तथा सबसे कम 49.26 फीसदी मतदान शोहरतगढ़ सीट पर हुआ

ग्रामीणा क्षेत्रों के वोटरों ने जम कर किया मतदान, जबकि कस्बाई वोटरों में देखी गई उदासीनता, भाजपा के नुकसान का अंदेशा

नजीर मलिक

जोगिया ब्लाक के एक बूथ पर उमड़ी ग्रामीण महिलाएं

सिद्धार्थनगर।  जिले की पांच सीटों के लिए हुई वोटिंग में कुल 51.70 फीसदी वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। यह पिछले विधानसभा चुनावों से लगभग 2 प्रतिशत कम है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 53 प्रतिशत वोट पड़े थे।मौजूदा चुनाव में सर्वाधिक  55.04 फीसदी वोट कपिलवस्तु विधानसभा क्षेत्र में तथा सबसे कम 49.26 फीसदी मतदान इटवा सीट पर हुआ है। इसके अलावा शोहरतगढ़ में 52.48 फीसदी, डुमरियागंज में 50.80 फीसदी तथा बांसी  में 50.13 फीसदी वोटरों ने अपनी पसंद के चुनाव चिन्ह पर बटन दबाया।

इस बार के मतदान में वोटिंग के घटे प्रतिशत पर जिले के अनेक जानकार कयाबाजी कर रहे हैं कि आखिर कम मतदान होने का मतलब क्या है और यह कमी किस दल को लाभ अथवा हानि पहुंचा सकती है। कुछ लोग इसे सत्ताधारी दल के प्रति उदासीनता मान रहे हैं तो इसके विरोध में बोलने वाले इसे विपक्ष के नाकारेपन के प्रति उपजी भावना की संज्ञा दे रहे हैं।

सत्ता पक्ष के नुकसान की आशंका

जिले के वरिष्ठ पत्रकार यशोदा श्रीवास्तव का मानना है कि जिले में बेरोजगार युवाओं में रोजगार को लेकर उपजा आक्रोश, आवारा पशुओं द्धारा फसलों को नष्ट करने से गुस्साए किसान तथा भाजपा से डरे सहमे मुस्लिम समाज ने मतदान का मौका मिलते ही जम कर पोलिग स्टेशन का रुख किया तथा भाजपा सरकार के खिलाफ बटन दबा कर अपने गुस्से का इजहार किया। इसके विपरीत प्रदेश में भाजपा के खिलाफ बने माहौल के कारण भाजपा का कट्टर समर्थक खास कर शहरी/कस्बाई वोटर अपने घरों से कम निकला। इस प्रकार ग्रामीण वोटरों के उत्साह ने जहां समाजवादी पार्टी या अन्य विपक्षी दलों का उत्साह बढ़ाया वहीं भाजपा के शहरी वोटों के बूथों पर न जाने से भाजपा को नुकसान हुआ।

हरिेशंकर पांडेय का कहना है कि सपा समर्थक वोटर जहां ज्यादा शोर मचा रह था वहीं भाजपा समर्थक वोटर कमल का बटन चुपचाप दबा रहा था। इसलिए यह कयास लगाना गलत है कि भाजपा को नुकसान हुआ है। लेकिन जितने भी राजनीतिक विश्लेषक हैं, उनका मानना है कि यह भाजपा को डिफेंड करने की दलील भर है। वरना यह प्रमाणिक तथ्य है कि जब मतदान का प्रतिशत गिरता है तो उसका नुकसान सत्तापक्ष को ही होता है। यह और बात है कि दो प्रतिशत कमदान से सीटों की संख्या पर बहुत ज्यादा अंतर न पड़े। परन्तु जितना भी लाभ होगा वह तो विपक्ष के खाते में ही मिलेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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