एक साथ तीन जनाजों को उठते देख शहर में कोहराम, बिलख उठा पुश्तैनी गांव
पति, पत्नी व बेटी का जनाज़ा घुरहुजोत में तथा ड्राइवर का बलरामपुर से उठा, 4 अन्य ज़ख्मी अस्पताल में
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। शुक्रवार को शहर के पुरानी नौगढ़ इलाका में तीन लाशों के उतरते ही कोहराम मच गया। इसी के साथ उससे सटे ग्रम घुरहूजोत में चीख पुकार मच गई। दरअसल तीनों मृतकों का पुष्तैनी गांव घुरहूजोत था, मगर पुरानी नौग़ढ़ में करोबार था। लिहाजा दोनों ही स्थानों पर गम के बादल मंडराये हुए थे।
तकरीबन 11:30 बजे 42 साल के ओबैदुर्रहमान, उनकी चालीस वर्षीया पत्नी आसमा और 12 साल की बेटी हुस्ना परवीन की लाश जैसे ही उनके पुश्तैनी ग्राम घुरहूजोत पहुंची, पूरा गांव सदमें में डूब गया। घरों से रोने बिलखने की आवाजें गूजने लगीं। पूरे गांव के दुखी होने का कारण यह भी था कि तीन मौतों के अलावा तीन अन्य घायलों की दशा भी अच्छी न थी। क्योंकि कार दुर्घटना में मृतक ओबेदुर्रहमान के छह, आठ व दस साल के तीन बच्चे सहित औबैदुर्रहमान के 70 साल के वालिद शहाबुद्दीन गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में थे।
शुक्रवार को नमाज के बाद जैसे कब्रिस्तान ले जाने के लिए तीनों जनाजे एक साथ उठे तो पूरे गांव की आंखें आसुओं में डूब गईं। पुरानी नौगढ़ क्षेत्र में शहाबुद्दीन का दवाखाना होने के कारण वहां भी शोक का माहौल छाया हुआ था। एक पूरा परिवार ही तबाही से दो चार था। तीनों बच्चे यदि इलाज के बाद बच भी गये तो उनके परवरिश का सवाल किसी दानव की तरह मुंह बाये खड़ा था।
बता दें कि जिला मुख्यालय के नगरीय क्षेत्र से सटे छोटे से गांव घुरहूजोत से ईद मनाने के बाद मुंबई के लिए निकला ओबैदुर्रहमान मुम्बई के मुम्ब्रा में बिल्डिंग मेटेरियल का कारोबार करते थे। इस बार के सफर में उनके पिता भी साथ में थे। ओबैदुर्रहमान का पूरा परिवार बुधवार रात झांसी जनपद के पुछं थाने के खिल्ली गांव के पास पहुंचा ही था कि अचानक सड़क हादसे का शिकार हो गया। कार के डिवाइडर से टकराने से ओबैदुर्रहमान, उनकी पत्नी आस्मा व 12 साल की बेटी हुस्ना व बलरामपुर जिले के निवासी 28 साल के कार चालक आमिर की मौत हो गई। जबकि, मृतक ओबैदुर्रहमान के पिता और उनके 6 से 10 साल के तीन अन्य बच्चे गंभीर रूप से जख्मी हो गए, वे अस्पताल में भर्ती हैं, उनका इलाज चल रहा है।
इस घटना के बाद से गांव में वीरानी छायी हुई है। लोगों का मानना है कि तीन मौतों को अब जिंदगी में नहीं बदला जा सकता, लेकिन असली दुख अब दूसरा है। गांव वाले मानते हैं कि अगर इस हादसे में घायल शहाबुद्दीन भी न बचे और तीनों बच्चे बच गये तो उन अनाथों का भविष्य क्या होगा/ यही वह दुख है जो गांव वालों को खाये ज रहा है। तीनों लाशों को सिपूर्दे खाक करते समय माहौल गमगीन है, लोग घायलों के जीवन के लिए दुआ व प्रार्थना कर रहे हैं।