टिकट वितरण नीतिः खुद के गोलपोस्ट पर गोल मार रहा समाजवादी पार्टी का कप्तान

February 9, 2022 3:11 PM0 commentsViews: 2228
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फिलहाल इटवा व कपिलवस्तु सीट पर मुख्य संघर्ष में दिख रही सपा, बांसी, शोहरतगढ़, डुमरियागंज विधानसभा सीटों पर बगावत के सुर

नजीर मलिक


सिद्धार्थनगर। विधानसभा चुनाव में जिले की पांच विधानसभा चुनावों में सपा द्वारा किये गये टिकट वितरण को देख लगता है कि राजनीतिक फुटबाल के इस मैदान में सपा आपने ही ऊपर गोल मारने को उद्धरित है। खेल की दुनियां में इसे आत्मघाती गोल करना कहा जाता है जबकि राजनीति की दुनियां के जापान शब्द ‘हाराकिरी’ की संज्ञा दी जाती है और सिद्धार्थनगर की राजीनीति ही नहीं पार्टी के अंदर के कई गंभीर सू़त्र भी चिंतित है कि सपा जिले में हाराकिरी (आत्महत्या) की नीति अपना रही है।

इटवा और कपिलवस्तु पर फैसला सटीक

जिले की पांच सीटों में से इटवा और कपिलबस्तु सीट पर वक्त पर सही फैसला करते हुए अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पांडेय व पूर्व विधायक विजय पासवान को पार्टी प्रत्याशी घोषित किया। समय से पहले और पूरी तरह सटीक फैसले का अर्थ यह हुआ कि दोनों सीटों के प्रत्याशी पूरे मनोवेग से रणनीति बना कर चुनाव लड़ रहे हैं। अन्य दलों की एक एक हरकत पर नजर रख कर दोनों प्रत्याशी किसी कुशल शिकारी की भांति अपने शिकार पर नजर रख रहे हैं। इसके कारण इन दोनों सीटों समाजवादी पार्टी नियोजित ढंग से आगे बढ़ रही है।

डुमरियांगंज में किस प्रकार की चूक हुई

आज के माहौल में सपा के लिए सबसे मजबूत सीट का दर्जा रखने वाली डुमरियांगंज सीट को सपा आलाकमान की छोटी मगर अहंकर भरी चूक ने अपनी फौज को कमजोर किला बना कर रख दिया है। दरअसल उस सीट से टिकट के तीनों दावेदार लगभग बराबर की राजीतिक हैसियत वाले थे। तीनों में किसी को भी सपा का टिकट दिया जा सकता था। पार्टी ने यहां सैयदा खातून को टिकट दिया। सैयदा खतून का चयन भी गलत नही है। वह चुनाव जीतने का दम खम रखती हैं। लेकिन सपा आला कमान की अहंकार भरे तौर तरीके ने एक जीती हुई लड़ाई को कठिन संघर्ष में बदल दिया। यह भाजपा के लिए खुशी की बात है।

सारे हालात पता थे अखिलेश को

डुमरियागंज की राजनीति के जानकार बताते है कि डुमरियांगंज में किसी के नाम की घोषाण के साथ ही बगावत होनी मुमकिन थी। यह अखिलेश को भलीभांति पता था। इसलिए उनको सैयदा के नाम की घोषणा के साथ बगावत पर काबू रखने का प्लान भी तैयार रखना चाहिए था जो नहीं हुआ। इसे अखिलेश यादव का अहंकार कहा जायेगा कि उन्होंने दोनों दावेदार चिनकू यादव व इरफान मलिक को पार्टी के साथ बने रहने के लिए डिप्लोमेसी के बजाये अहंकर भरी डांट का सहारा लिया। नतीजा सामने हैं, सैयदा प्रत्याशी हैं तो इरफान मलिक बागी सुल्तान और उनके पीछे है तीसरे दावेदार के समर्थकों की ताकत।

यह डुमरियागंज के लोग ही नहीं खुद अखिलेश यादव भी समझते हैं कि यहां पार्टी का कम छेत्रिय नेताओं के अपने अपने वोट बैंक है। उन्हें यह बात शायद याद भी होगी कि वर्ष 2012 में जब कमाल युसुफ का टिकट काटा गया था तो भी प्रदेश में अखिलेश की लहर थी इसके बावजूद कमाल यूसुफ ने सपा से बगावत कर चुनाव लड़ा और चुनाव जीते भी। ऐसे में आखिलेश यादव को याद रखना चाहिए था कि इतिहास फिर दोहराया जा सकता है। उन्हें कमाल युसुफ और चिनकू यादव के साथ सम्माजनक ढंग से बातचीत कर बगावत पर काबू करना चाहिए था। मगर अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव नहीं हैं। मुलायम खुद हलाहल पीने वाले राजनेता थे जबकि अखिलेश अहंकार के साये तले पनप रहे एक साधारण नेता हैं।

बांसी व शोहरतगढ़ में लिख दिया पराजय की इबारत

जिले की बांसी और शोहरतगढ सीट पर तो सपा अलाकमन ने अदूर दर्शिता की सारी हदें तोड़ दीं। शोहरतगढ़ सीट पर टिकट के दो दावेदार थे। पहले उग्रसेन सिंह जो गत चुनावों में सपा प्रत्याशी थे। दूसरे अपना दल छोड़ कर आये विधायक अमर सिंह। पार्टी को इन्हीं में से एक का चयन करना चाहिए था, मगर आलाकमान का नेतृत्व का गुण देखिए कि उन्होंने शोहरतगढ़ सीट सुभासपा को दे दी, जहां उसका तनिक भी जनाधार नहीं और अमर सिंह चौधरी को बांसी भेज दिया, अमर सिंह के लिए बिलकुल नया क्षेत्र हैं। वैसे यह भी शोर है कि शोहरतगढ़ में सुभासपा के टिकट पर उग्रसेन सिंह आ रहे हैं।

लड़ने से पहले ही हार गये बांसी?

अमर सिंह को बांसी का प्रत्याशी बनाये जाने से सपा के सबसे पुराने पुरोधा और पार्टी के जिलाध्यक्ष लालजी यादव व टिकट की एक अन्य दावेदार चमन आरा राईनी का खेमा पूरी तरह से हताश हो चुका है। बांसी के वर्कर कहते भी है कि पार्टी यदि किसी भी स्थानीय नेता को टिकट देती तो वे जम कर लड़ते, लेकिन एक बाहरी व्यक्ति को यहां भेजने का अर्थ है कि पार्टी ने बिना लड़े ही हार की बुनियाद रख दी। यानी शोहरतगढ़ और बांसी दोनों ही सीटों पर बगावत की आहट दिख रही है। सपा की इस टिकट वितरण नीति से भाजपा की लड़ाई फिलहाल आसान दिख रही है।

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