इटवा में सहानुभूति के हथियार से चौकोर लड़ाई के संकेत, भाजपा फिलहाल कमजोर

January 27, 2022 2:57 PM0 commentsViews: 1333
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सपा के माता प्रसाद पांडेय, कांग्रेस के अरशद खुर्शीद व बसपा के हरिशंकर सिंह के वार की काट कर पाना भाजपा के लिए कठिन

नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। विधानसभा सीट इटवा में इस बार राजनीतिक लहर के बजाए सहानुभूति के हथिर के बल पर चुनावी रंग के संकेत मिल रहे हैं। जिसमें भाजपा छोड़ सभी की तरकश में सहानुभतिक तीर भरे हैं, मगर सत्ता पक्ष का तरकश इस अस्त्र से खाली दिखता है। अतः चुनावी रण में फिलहाल इस मोर्चे पर वह कमजोर दिख रही है। विधानसभा सभा सीट इटवा में सपा, बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के पास सहानुभतिक अस्त्र के रूप में एक से एक तीर हैं, मगर भाजपा के पास इस अस्त्र की कमी है। सिर्फ कमी ही नहीं उस पर भ्रष्टाचार के कई आरोप भी चस्पा हैं जिसकी काट के लिए इस बार भाजपा उम्मीदवार के पास कोई जवाबी अस्त्र नहीं दिखाई पड़ रहा है।

इटवा विधानसभा से इस बार समाजवादी पार्टी से प्रदेश विधानसभा के दो बार अध्यक्ष रहे माता प्रसाद जैसे कद्दावर नेता है। इसके अलावा बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होकर प्रत्याशी बने अरशद खुर्शीद व भाजपा छोड़ कर हाथी पर सवार हुए वरिष्ठ नेता हरिशंकर सिंह हैं। जो सभी अलग अलग तरीके से भाजपा प्रत्याशी के समाने चुनौती पेश करेंगे। भाजपा का टिकट अभी अधिकृत रूप से घोषित नहीं हुआ है गर माना जाता है कि प्रदेश के बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री सतीश द्धिवेदी ही यहां के उम्मीदवार होंगे।

सपा के पास प्रत्याशी के अखिरी चुनाव का नारा है

सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार विपक्ष के तीनो उम्मीदवारों के पास सहानुभति पाने का बहुत बड़ा चांस है और तीनों ही अपने अपने चांस को भुनाने की भरपूर कोशिश करेंगे। हालांकि चुनाव में में सपा के पक्ष में एक माहौल है फिर भी इटवा में सपा के कार्यकर्ता अभी से कहा रहे हैं कि माता प्रसाद पांडेय जी का यह आखिरी चुनाव है। इसलिए वही इस बार जनता का सबसे अधिक समर्थन पाकर रिकार्ड मतों से विधानसभा जाएंगे। अखिलेश यादव के सीएम बनने पर विस अध्यक्ष के रूप में वह विकास का बड़ा काम कर सकेंगे।

अरशद व हरिशंकर के पास अचूक सहानुभूतिक अस्त्र

दूसरी तरफ कांग्रेस और बसपा के प्रत्याशी रहे अरशद खुरर्शीद व हरिशंकर सिंह के पास भी हमदर्दी पाने का अचूक अस्त्र है। बसपा के हरिशंकर सिंह अभी से जनता को बता रहे है कि भाजपा ने बुरे दिनों में उन्हें प्रत्याशी बनाया परन्तु अच्छे दिन आने के बाद किस प्रकार उनका टिकट दो बार काटा और पिछले ब्लाक प्रमुख व जिला पंचायत चुनाव में उनके परिजनों के साथ विश्वासघात किया। हरिशंकर सिंह जिले के एक मात्र भाजपा नेता रहे है जिन्हें उनके इर्द गिर्द के गांवों के मुसलमान भी खुलकर वोट देते हैं।

पिछले चुनाव में दूसरे नम्बर थे अरशद

जहां तक कांग्रेस नेता अरशद खुर्शीद का सवाल है वह गत चुनाव में बसपा से लड़ कर दूसरे नम्बर पर रहे थे। वह कम मतों से हारे थे। यहां तक की उनके खिलाफ लड़ रहे सपा के दिग्गज माता प्रसाद पांडेय तीसरे नम्बर पर रहे थे। आम मुसलमान वोटर उनकी हार का जिम्मेदार कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम को मानता है। वह अगर खुल कर माता प्रसाद के पक्ष में न आते तो अरशद खुरशीद चुनाव जीत सकते थे। अरशद इस चुनाव में मुसलमानों के बीच में जोर शोर से उठा कर  जनता को याद दिलाते हुए उनकी सहानुभति बटोरने का प्रयास जरूर करेंगे।

जहां तक भाजपा का सवाल है उनके सम्भावित प्रत्याशी सतीश चन्द्र द्धिवेदी के पास ऐसा कोई सहनुभतिक अस्त्र नहीं है। उल्टे उन पर अपनी माता के नाम करोड़ों की समपित्तियों को कौड़ियों के भाव खरीदने व भाई को झूठे प्रमाणपत्र के सहारे नौकरी दिलाने का ओरोप है, जिनमें भाई को त्यागपत्र भी देना पड़ा। ऐसे में विपक्ष की सहानुभूतिक वार का उनके पास कोई काट नहीं है। उलटे उनके खिलाफ सत्ता की इनकम्बेंसी भी है। इसमें भाजपा के सशक्त उम्मीदवार तीन तीन हमलावरों के मुकाबले अपनी जीत की रणनीति कैसी बनाएंगे, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।

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