ज़िला अस्पताल की व्यवस्था चरमराई, रोज़ाना आ रहे एक हज़ार मरीज, न दवा, न बेड,
— एक एक बेड पर लिटाये जा रहे तीन तीन मरीज, अस्पताल में अव्यवस्था का बोलबाला
अजीत सिंह
सिद्धार्थनगर। जोगिया क्षेत्र की बाढ़ पीडित सुघरी देवी अपने 2 साल के बीमार बच्चे को लिए जिला अस्पताल के बरामदे में सुबह से बैठी हुई है। वह यहाँ आठ बजे आई है।12 बज रहे हैं। अभी तक उसके बेटे को देखने वाला डॉक्टर नहीं है। ओपीडी 2 बजे बंद हो जायेगी। वह परेशान है, मगर उसके आंसुओं की फ़िक्र किसी को नहीं है। अव्यवस्था और सरकारी लूट हर पाकड़त को रुला रही है।
यहाँ ज़िला अस्पताल में इस प्रकार की व्यथा अकेली सुघरी देवी की नहीं है। प्रतिदिन सैलाबी की मार से पीड़ित सैकडों गरीब अस्पताल से इसी प्रकार रोते सिसकते निराश हो कर वापस लौटते हैं। फिर बाढ़ से बचे सामान औने पौने दामों में बेच कर प्राइवेट डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर है कि नियत वक़्त से एक मिनट भी ज़्यादा आपीडी में नहीं बैठते। इस संकट काल में भी उनको अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस ज़्यादा प्यारी है।
दरअसल इस बार के सैलाब ने बीमारियों में काफी इज़ाफ़ा कर दिया है। शोहरतगढ़ और नौगढ़ तहसील से प्रतिदिन एक से दो हज़ार मरीज अस्पताल में रोज़ आ रहे हैं। आज शुक्रवार को भी अस्पताल में 12 सौ मरीज आये थे, जिनमे से सैकड़ों मरीज निराश होकर लौट गए। निराश तरीजों की भीड़ फिर उन्हीं डाक्टरों के आवास पर जुटी और फास देकर इलाज कराया।
अस्पताल खुद बीमार है
मरीज़ों की बढ़ती तादाद और अस्पताल के कम संसाधन मरीज़ों की परेशानी के मुख्य कारण हैं। इस वक्त अस्पताल में कुल 26 डॉक्टर हैं, और बेड की संख्या 100 है। जबकि हर दिन औसतन 300 मरीजों को भर्ती करनी पड़ रही है। नतीजतन यहाँ एक बेड पर दो से तीन तीन मरीज़ों को लिटाया जा रहा है। दवाएं वही रूटीन वाली हैं। लेकिन गरीब क्या करे, मजबूरी में जितना हैं, उसके लिए काफी हैं।
डॉक्टरों में सेवा भाव नहीं
जहाँ तक डॉक्टरों का सवाल है, उनके भीतर की बीमार संवेदना ने उन्हें काहिल और जाहिल बना रखा है। दोपहर के 2 बजते ही वो नियम का हवाला देकर उठ जाते हैं। ऐसे में निराश रोगी मजबूर होकर उनके आवास पर फीस देकर इलाज कराता है। और गरीब सिसकता हुआ लौट जाता है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता गोविन्द माधव कहते हैं कि इन हालात में डॉक्टर अगर तनिक भी मानवीय संवेदना अपना लें तो कुछ अतिरिक्त वक्त देकर सैकड़ों मरीजों की मदद कर सकते हैं।