यादें : 29 दिसम्बर 88 को सिद्धार्थनगर जिला बन रहा था मगर सांसद का दिल रो रहा था

December 29, 2019 12:26 PM0 commentsViews: 2317
Share news

२९ दिसम्बर १९८८ को जिले की स्थापना दिवस का दुलर्भ चित्र। मंच पर मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ कांग्रेस के युवा नेता नर्वदेश्वर शुक्ल व जगदमिबका पाल के साथ में जिले के प्रम डीएम हौसिला प्रसाद वर्मा और एसपी दिलीप त्रिवेदी जी।

 

नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर।  गौतम बुद्ध के नाम पर 29 दिसम्बर 1988 को सिद्धार्थनगर जिले का सृजन हुआ था। आज इस जिले को बने 31 साल हो चुके हैं। तीन दशक के अंतराल में जिले में बहुत कुछ बदल गया, लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है जो बिलकुल नहीं बदला। नये नेता और अफसर आ  गये। लेकिन विकास की रफ्तार वही पुरानी है। आइये याद करते हैं 1988 के आस पास घटित चंद घटनाएं, जो आज भी आप को रोमांचित कर देंगी। उस दिन एक ऐसी घटना हुई जो यदि नहीं घटित होती तो डुमरियागंज का एक हिस्सा आज बस्ती जिले में होता।

29 दिसम्बर का वह ऐतिहासिक दिन

२९ दिसम्बर 1988 का दिन बहुत रोमांचकारी था। शहर के सिंहेश्वरी इंछर कालेज के मैदान में जिले के उद्घाटन करने प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी आने वाले थे। उनकी सभा सिहेंश्वरी इंटर कालेज के मैदान में थी। जिसकी क्षमता चालीस हजार व्यकित से अधिक न थी। लगभग 12 बजे तक मैदान पूरा भरने के करीब आ चुका था। लेकिन जिले के हर स्थानों से भीड थी कि आती ही जा रही थी। दो बजते बजते सिहंश्वरी का मैदान, उसके तीनों दिशाओं के बागीचे, सकूल की सारी छतें ही नहीं जमुआर नदी का पूरा खादर भी भर चुका था। तब लोगों ने भीड़ का अनुमान दो से ढाई लाख लगाया था। उसके बाद से आज तक फिर जिले में कहीं भी किसी भी स्थान पर इतनी बड़ी भीड़ नहीं देखी गई।

टूट गईं थीं, सारी दलीय सीमाएं।

जिला सृजन के दिन न कोई कांग्रेसी था न लोकदली न ही भाजपायी। सच्चे मायनों में उस दिन सारी दलीय सीमाएं टूट गईं थीं। कांग्रेसी दिग्गज मथुरा प्रसाद पांडेय, घनराज यादव, सईदभ्रमर,d कमाल यूसुफ, माता प्रसाद पांडेय, कमला साहनी जैसे विधायक पूर्व विधायक अपनी दलीय प्रतिबद्धता तोड कर काग्रेसी मुख्मंत्री नारायण दत्त तिवारी की शान में कसीदे पढ़ रहे थे। हर तरफ तिवारी जी जिंदाबाद गुज रह था। हर तरफ फूलों की पंखुरियां उड़ाई जा रही थीं। हर तरफ मिठाइयां लुटायीं जा रही थीं।

खुशियों के बीच बस उदास था केवल एक चेहरा

उस समय दो लाख खिलखिलाते लोगों के बीच धारा के विपरीत केवल एक चेहरा था जो बेहद उदास था। वह थे स्वतंत्रता सेनानी और क्षेत्र के सांसद काजी जलील अब्बासी साहब, जिनकी आखें गीली थीं, क्यों कि डुमरियागंज तहसील का एक हिस्सा जिसमें उनका गांव जवार भी शामिल था, बस्ती जिले में चला गया था। काजी साहब उस समय कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे, लेकिन संयोग से उस समय नारायण दत्त के विरोधी व प्रदेश मुख्यमंत्री रहे बीर बहादुर सिंह के खेमे के थे। वह जानते थे कि मुख्यमंत्री के विरोधी गुट में होने  के कारण अब उनका क्षे़त्र सिद्धार्थनगर जिले में जोड़ा जा पाना मुश्किल है। यही उनके दुख का कारण था। खुशियों के बीच किसी को उनके दर्द का एहसास भी नहीं था।

  अचानक सिनारियो में आये नर्वदेश्वर शुक्ल

अपरान्ह् 2 बजे के आस पास का समय था। नारायण दत्त जी के आगमन का समय हो रहा था। उसी समय नारायण दत्त जी के करीबी और राजनीति के उभरते सितारे नर्वदेश्वर शुक्ल व मंच की तरफ बढ़े। शोहरतगढ़ निवासी शुक्ल उस समय वह ग्रामीण विद्युतीकरण के चेयरमैन और प्रदेश के दर्जा प्राप्त मंत्री थे। प्रदेश में उनका काफी बोलबाला था। उन्हें पता था कि जलील अब्बासी साहब और नारायण तिवारी जी में गुटीय मतभेद हैं। उन्होंने मंच के नीचे उदास खड़े सांसद अब्बासी साहब को देखा और दूसरे गुट का नेता होने के कारण उन पर व्यंग्य करते हुए उन्हें हंसते हुए जिला सृजन की बधाई दे डाली। अब्बासी साहब ने बड़ी बेबसी से उस व्यंग्य को सुना। मगर वे कर भी क्या सकते थे। लेकिन नर्वदश्वर शुक्ल को शायद बाद में काजी जलील अब्बासी साहब की सीनियारिटी का आभास हुआ और मंच पर मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के सामने डुमरियागंज के कटे हुए क्षेत्र को इस जिले में जोड़ने की मांग कर डाली।

… नहीं तो आज डुमरियागंज बस्ती जिले का हिस्सा होता

इसके बाद काजी साहब ने नर्वदेश्वर शुक्ल को सीने लगा कर शुक्रिया कहा। सालों के मतभेद मिनटों में आंखों से बह गये। इस मिलन के बाद काजी साहब को लेकर नर्वदेश्वर शुक्ल मुख्यमंत्री के पास गये, फिर कई बार मिले। अन्ततः उनके क्षेत्र को सिद्धार्थनगर जिले में शामिल करवाने में कामयाब हुए। यह एक ऐसी घटना थी जिसने काजी साहब और नर्वदेश्वर शुक्ल के गिले शिकवे खतम कराये। नर्वदेश्वर शुक्ल आज मानते हैं कि उन्हें बाद में अपने व्यंग्य का यहसास हुआ और उन्होंने बाद में काजी साहब की भरपूर मदद की। यदि नर्वदेश्वर शुक्ल खुल कर आगे न आते तो शायद डुमरियागंज का दक्षिण पूर्व का हिस्सा आज बस्ती जिले में होता।

तीन घंटे के लिए जिले के एसपी रहे दिलीप त्रिवेदी

जिले के पहले कलक्टर हौसिला प्रसाद वर्मा और एसपी दिलीप त्रिवेदी थे। डीएम वर्मा साहब तो जिले में 1991 के विधानसभा चुनाव पूर्व तक रहे, लेकिन पुलिस कप्तान दिलीप त्रिवेदी एक दिन के एसपी रहे। वे मुख्यमंत्री के साथ आये और उन्हीं के साथ रवाना हो गये। इस प्रकर वे जिले के मात्र 3 घटे तक पहले एसपी के रूप में रहे। यह और बात है कि कागज में वे एक दिन के एसपी माने जाते हैं।

यह हैं जिला सृजन दिवस की कुछ यादें। हालांकि इन तीस सालों में जिले में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन विकास के क्षेत्र में आज भी बहुत कुछ बदलाव की आवश्यकता है। इस दौरान जिले में दो नई तहसीलों का सृजन हो गया। कलक्टे्ट बनी। तमाम सरकारी आफिस बने। लेकिन नहीं बदला तो राजीतिक क्षेत्र और अफसर शाही में व्याप्त भ्रष्टाचार। जनता पहले भी इसी चक्की के दोनों पाटों के बीच पिसती थी और आज भी पिसने का मजबूर है।

 

 

 

 

Leave a Reply